झारखंड से क्यों हो रहा है ब्रेनड्रेन, शिक्षा की ध्वस्त स्थिति जान कर पैरों तले खिसक जाएगी जमीन
रांची : आप ये भूल जाइए कि प्रदेश में शिक्षा की जो ध्वस्त स्थिति है उसमें झारखंड के विश्वविद्यालयों से कोई अब्दुल कलाम पैदा होगा. अभी बारहवीं की बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट जारी होने के बाद झारखंड की ट्रेनों से भर-भर कर स्टूडेंट्स दिल्ली, बेंगलोर, हरियाणा, हैदराबाद और तो और बंगाल और ओड़िसा जैसे राज्यों में पलायन कर गए. आखिर करें भी क्यों नहीं. आज हम जो सच आपको बताने जा रहे हैं वह इस बात को बताने के लिए काफी है कि झारखंड से क्यों हो रहा है ब्रेन ड्रेन. आज हम परत दर परत बताएंगे कि कैसे झारखंड के गरीब-आदिवासियों और मेधावी बच्चों के भविष्य के साथ सरकार कैसे खिलवाड़ कर रही है.झारखंड. वह राज्य जो खनिज संसाधनों के मामले में देश का सबसे समृद्ध राज्य है. लेकिन, इस राज्य में शिक्षा व्यवस्था की हालत खराब है. स्थिति यह है कि झारखंड के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के करीब 1250 पद खाली हैं. झारखंड सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में भी यह स्वीकार भी किया था कि राज्य में 40 फीसदी से ज्यादा शिक्षकों की कमी है.
आलम यह है कि झारखंड बनने के बाद राज्य में सिर्फ एक बार 2008 में झारखंड लोक सेवा आयोग ने व्याख्याताओं के 745 पदों पर नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित की थी. 16 साल बीत जाने के बाद भी आज तक व्याख्याताओं के नियमित पदों पर बहाली नहीं हुई है. घंटी आधारित व आवश्यकता आधारित शिक्षकोंं से झारखंड में शिक्षा की गाड़ी खींची जा रही है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने भी इसे लेकर गहरी चिंता जताई है. आयोग ने पिछले साल सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और कॉलेज के प्रिंसिपलों को इस संबंध में एक पत्र लिखा था. लेकिन अब तक स्थिति जस की तस है.
अब आइए जानते हैं कि आखिर किस विश्वविद्यालय में कितने शिक्षकों की कमी है. जानकारी के अनुसार झारखंड के संताल परगना में कुल 13 कॉलेज हैं. जहां सटूडेंट्स की संख्या करीब 60,000 है. जबकि इन छात्रों को पढ़ाने के लिए सिर्फ 271 शिक्षक हैं. यानी 220 छात्र पर एक शिक्षक हैं. झारखंड के 2018 के आंकड़ों के अनुसार विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों के 1,118 पद खाली थे. अगर हम 2018 के ही आंकड़ों को माने तो नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय में 107, कोल्हान विश्वविद्यालय में 364, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में 75, रांची विश्वविद्यालय में 268, विनोबा भावे विश्वविद्यालय में 155, सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय में 190 पद अभी खाली हैं. पांच साल के बाद यह संख्या बढ़ चुकी है. इनमें 552 पद पर सीधी और 556 पर बैकलॉग से नियुक्ति की जानी है. इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की कमी है, लेकिन झारखंड में सरकार एक चुनाव से निकली है और दूसरे चुनाव की तैयारी में जुट गयी है.
इस खतरनाक स्थिति पर पूर्व के दो राज्यपाल सह राज्य के विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति रह चुकीं द्रौपदी मुर्मु और रमेश बैस ने भी शिक्षकों के पद रिक्त पड़े रहने पर गहरी चिंता जताई थी. उन्होंने तो यहां तक कहा था कि उन्हें इस बात की हैरानी है कि आखिर इतने कम शिक्षकों में राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाई कैसे संभव हो पा रही है. वर्ष 2012-13 के आंकड़ों के अनुसार झारखंड के उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रत्येक 48 छात्र-छात्राओं पर औसतन एक शिक्षक उपलब्ध थे. वर्ष 2018-19 में यह अनुपात 73 हो गया. जबकि अब यह अनुपात बढ़ कर प्रति शिक्षक 120 हो गया है. झारखंड में हर साल बैकलॉग नियुक्तियां बढ़ रही हैं, लेकिन झारखंड लोक सेवा आयोग से नियुक्ति की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है. देर से ही सही लेकिन जेपीएससी ने झारखंड पात्रता परीक्षा ( जेट ) का आयोजन करने की तैयारी की. इसके लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी से संपर्क किया गया.
जुलाई तक परीक्षा आयोजित करवाने का प्रस्ताव एनटीए को दिया. लेकिन यूजी नीट की परीक्षा में धांधली में फंसी एनटीए ने जेपीएससी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है. एनटीए के इंकार के बाद राज्य के विश्वविद्यालयों में होने वाले 2404 असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति का मामला एक बार फिर लटक गया है. आपको यह बता दें कि राज्य गठन के बाद से अब तक यानी 24 साल में सिर्फ एक बार वह भी 2006 में झारखंड पात्रता परीक्षा ( जेट ) हुआ था. जेपीएससी ने परीक्षा आयोजित करवाने की दिशा में एनटीए के अनुभवों को देखते हुए जेट की परीक्षा आयोजित करवाने की जिम्मेदारी एनटीए को दी थी.
लेकिन एनटीए के इंकार के बाद अब जेपीएससी को नये सिरे से कुल 43 विषयों में प्रश्न तैयार करवाने से लेकर तमाम तैयारियां करने में काफी समय लग जाएगा. इस बार जेपीएससी द्वारा यह तैयारी की गयी थी कि एनटीए से जैट की परीक्षा करवा ली जाए, ताकि किसी प्रकार का सवाल खड़ा नहीं हो. कारण है कि वर्ष 2006 में जो जेट की परीक्षा हुई थी उसमें बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी. परीक्षा के बाद मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपी गयी थी. इसमें फर्जी बहाल कई शिक्षक जेल भी गए जबकि कुल 69 शिक्षकों के खिलाफ चार्जशीट दायर है. एनटीए द्वारा परीक्षा लेने के प्रस्ताव को ठुकराए जाने के बाद अब एक बार फिर झारखंड में असिस्टेंट प्रोफेसरों की बहाली का मुद्दा लटकता दिख रहा है. कारण है कि राज्य में आने वाले तीन माह के भीतर आदर्श आचार संहिता लगने की संभावना है.