नई दिल्ली : छोटे यानी नवजात बच्चों कोई भी निश्चित टाइम टेबल नहीं होता है. उन्हें जब मन करता है तब वे दूध पीते है. इसके साथ ही बच्चे ज्यादा देर तक सोते है और कम समय तक जागते है. नवजात बच्चे खासकर रात में बहुत ही कम सोते है. इस वजह से उनके माता-पिता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि नवजात बच्चों का ये स्लीपिंग पैटर्न जन्म के 6 महीने तक ऐसे ही चलता है. नवजात बच्चे अपनी मर्जी से सोते और जागते हैं. इसके साथ ही कुछ नवजात शिशु ऐसे भी होते है जो रात को बिलकुल भी नहीं सोते है. इस वजह से शिशु के मां की नींद पूरी नहीं होती है और वह पूरा दिन चिड़चिड़ा महसूस करती है.
डॉक्टर्स का कहना है कि कई बार रात में जागना नवजात बच्चों के लिए बहुत ही आम बात है. इसके साथ ही यह नवजात बच्चों के माता-पिता के लिए बहुत थका देने वाला और परेशान करने वाला होता है. लेकिन ऐसी कई रणनीतियां हैं जो नवजात बच्चों कि नींद को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं. इसको लेकर बाल रोग विशेषज्ञ का कहना हैं कि रात में नवजात बच्चों को नींद न आने के पीछे कई छोटे-छोटे कारण हो सकते है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते है.
दूध ज्यादा पिलाना
डॉक्टर्स का कहना है कि रात में बच्चों को नींद न आने कारण अधिक दूध पिलाना भी हो सकता है. नवजात बच्चा अगर दूध का ज्यादा सेवन करता है तो उसे कब्ज और दस्त जैसी समस्या हो सकती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि रात के समय नवजात बच्चों को नींद न आने कि समस्या ज्यादा डब्बाबंद दूध पीने की वजह से होती है.
दूध कम पिलाना
डॉक्टर्स का मानना है कि बच्चा अगर कम दूध पिता है या पेट की जरुरत के अनुसार खाना नहीं खाता है तो रात को उसे नींद नहीं आती है. बताया जा रहा है कि नवजात शिशु का पेट छोटा होता है. इसके साथ ही मां का दूध शिशु जल्दी पचा लेता है. इसके वजह से नवजात शिशु को जल्दी भूख लगती है और वह रोने लगता है. इसलिए बच्चों थोड़े-थोड़े समय पर कुछ न कुछ खिलाते रहना चाहिए, इससे बच्चा आराम से सो पाएगा.
अत्यधिक उत्तेजना
नवजात शिशु बहुत ही संवेदनशील होते है. इसके साथ ही बहुत अधिक उत्तेजना उन्हें नींद से दूर कर देती है.
दर्द के कारण
नवजात शिशु को हमेशा कोई न कोई दिक्कत महसूस होती रहती है, क्योंकि नवजात बच्चे बहुत ही सेंसिटिव होते है. शिशु रात में कफ, कोल्ड और पेट में दर्द की वजह से नहीं सो पाते है. इसलिए ऐसे में शिशु पर विशेष ध्यान रखने कि आवश्यकता होती है. इसके साथ ही समय-समय पर शिशु को लेकर डॉक्टर से जरुर सलाह लें.
गीलापन
कई बार बच्चे रात के समय बिस्तर गिला कर देते है और माता-पिता को पता भी नहीं चलता है. रात में गीलेपन की वजह से शिशु रोने लगते है. इसलिए सोने से पहले शिशु के लिए डायपर का इस्तेमाल करें, जिससे शिशु को गीलापन नहीं लगेगा और वो आराम से सो पाएगा.
थकान
दिनभर शिशु हाथ पैर चलाता है और खेलता है. इस वजह से उसे थकान महसूस होती है. इसके साथ ही उसे रात के समय सोने में दिक्कत होती है. वहीं नवजात शिशु को 11 से 12 घंटे की नींद चाहिए होती है. वहीं जब उसे नींद न मिले तो शिशु थका हुआ
जब बच्चा गर्भ में होता है तब मां इधर-उधर पूरे दिन घूमती रहती है और कुछ न कुछ करती रहती है. इससे पेट में पल रहे बच्चे को ऐसा महसूस होता है जैसे पालने में एमनियोटिक द्रव आगे-पीछे झूल रहा है. इसलिए वह गहरी नींद में सो जाता है. वहीं रात के समय में जब मां सो रही होती है, उस वक्त सब कुछ शांत रहता है. कोई हलचल न होने के कारण पूरी रात शिशु जागता है. हम सभी जानते हैं कि बच्चे 9 माह गर्भ में बिताते है. इसके साथ ही डॉक्टर्स का कहना है कि जन्म के बाद भी बच्चे कुछ महीनों तक यही तरीका अपनाते हैं. वे रात में इसलिए सो नहीं पाते है.
बच्चा जब 3 से 4 महीने का हो जाता है तब वह दिन और रात के बीच अंतर पहचानने लगता है. इसलिए वह रात में सोना और दिन में खेलना शुरू कर देता है. बाल रोग विशेषज्ञ का मानना है कि जन्म के बाद लगभग 3, 4 महीनों तक शिशु जब चाहें तब उठते और सोते हैं. वे ऐसा इसलिए करते है क्योंकि उन्हें दिन और रात का अंतर नहीं मालूम होता है.
वहीं समय-समय पर बच्चे का स्वास्थ्य जांच करवाते रहना चाहिए. क्योंकि कई बार ऐसी भी बिमारी हो सकती है जो नींद में खलल पैदा कर सकती है. इसलिए सावधानियां बरतनी जरुरी है ताकि बच्चे की सेहत अच्छी रहे.