कोलकाता: 9 अगस्त की काली रात भारत की एक बेटी और उसके परिवार के लिए हमेशा एक दर्दनाक दिन के रूप में जाना जाएगा.कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त को एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के बाद पश्चिम बंगाल सरकार विधानसभा में एंटी रेप बिल पेश करने जा रही है. क्रिमिनल एक्सपर्ट्स का कहना है कि राज्य में इस कानून को लागू करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है. भारत का हर जिम्मेदार नागरिक इस क़ानून की मंजूरी की मांग कर रहा है .
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अगर राज्य सरकार के पास पॉवर होता तो वह ट्रेनी डॉक्टर मामले में आरोपी को मृत्युदंड दिलाती. ममता ने कहा कि अगर राज्य से कुछ न हुआ तो अब वे जल्द ही आन्दोलन शुरू करेंगी.
आइए जानें कि क्रिमिनल एक्सपर्ट्स की इस पर क्या राय है :
सीनियर काउंसल और सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय घोष का कहना है कि ये एक गंभीर क्रिमिनल केस है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस केस को आपराधिक कानून बना सकते हैं. उनका कहना है कि अगर इस पर पहले से कोई नियम और कानून के कायदे हैं तो राज्य सरकार उसे आर्टिकल 254 के तहत केंद्र सरकार के कंसेंट का इंतज़ार कर सकती है.
आखिर कब मिलेगी इसकी मंजूरी ?
घोष का कहना है कि नियमों के अनुसार पश्चिम बंगाल की सरकार अपनी मांगों को राष्ट्रपति के पास भेज सकती है. ये संविधान के दायरे के अन्दर है. यदि राष्ट्रपति उस स्टेट अमेंडमेंट को स्वीकार कर लेते हैं तो इस मामले में पश्चिम बंगाल राज्य का अमेंडमेंट को मान्यता अवश्य मिलेगी। क्या राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देने की कोई डेडलाइन है ? इस सवाल पर घोष ने कहा कि राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह पर चलते हैं. राष्ट्रपति पर इस एक्ट की मजूरी देने की कोई मजबूरी नहीं है. साथ ही आपको बता दें कि इस अमेंडमेंट के लागू होने की कोई समय सीमा नहीं दी गई है. इस प्रक्रिया को पूरा करने का कोई समय निश्चित नहीं किया गया है .
सेशन बुलाना और भी है चुनौतीपूर्ण ! क्या राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देना अनिवार्य है?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी दुबे ने कहा, ‘संविधान में इस तरह के पुनर्विचारित विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देना अनिवार्य है या नहीं, इसका उल्लेख नहीं है.’ अश्विनी दुबे ने भी सहमति जताई कि अमेंडमेंट लाने का कदम कानूनी रूप से वैलिड है. उन्होंने स्पेशल असेंबली सेशन बुलाने के तरीके पर भी सवाल उठाया और कहा, ‘केवल राज्यपाल को अनुच्छेद 174 के तहत सेशन बुलाने का अधिकार है. इस मामले में सरकार ने खुद ही सेशन बुलाया है, जो एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा है. सुप्रीम कोर्ट के वकील सत्यम सिंह राजपूत के कहा कि यह एक आपराधिक कानून है इसलिए इस बिल को केंद्र सरकार से भी मंजूरी की आवश्यकता होगी. होम मिनिस्ट्री लॉ के बदलाव के लिए जांच करेगा। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह मौजूदा राष्ट्रीय कानूनों और पालिसी के अनुसार है. इसके अलावा, भले ही केंद्र सरकार बिल को मंजूरी दे दे, फिर भी इसे कानून बनने से पहले भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी.’