नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने अफसरों की सीधी भर्ती पर उठते सवालों के बीच ‘लैटरल एंट्री’ से 45 स्पेशलिस्ट की नियुक्ति का फैसला वापस ले लिया है. इसके साथ ही केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर इस भर्ती का विज्ञापन रद्द करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग के चेयरमैन को पत्र लिखा है। ‘लैटरल एंट्री’ से अधिकारियों को नियुक्त किए जाने का विज्ञापन यूपीएससी ने ही निकाला था. अब इसे रद्द कर दिया गया है.
बिना आरक्षण के भर्ती वापस
बता दें कि केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में जॉइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी पदों पर 45 स्पेशलिस्ट की सीधी भर्ती के लिए 17 अगस्त को UPSC ने विज्ञापन जारी किया था. इसके साथ ही इस फैसले को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और BSP ने एससी, एसटी और ओबीसी के खिलाफ बताया. वहीं फैसला वापस लेने की मांग की थी. इसके साथ ही NDA गठबंधन में शामिल जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने बिना आरक्षण के इस भर्ती पर सवाल उठाये थे.
लैटरल एंट्री में भी होगा आरक्षण
बताया जा रहा है कि UPSC को विज्ञापन वापस लेने वाले पत्र में लिखा गया है कि ‘प्रधानमंत्री का मानना है कि लैटरल एंट्री की प्रक्रिया हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के आदर्शों पर आधारित होनी चाहिए, खासकर आरक्षण के प्रावधानों को लेकर। सरकारी नौकरी में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य समावेशिता को बढ़ावा देना है.
सामाजिक न्याय के लिए लैटरल एंट्री’ में आरक्षण : मंत्री अश्विनी वैष्णव
केंद्रीय रेल और सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए ‘लैटरल एंट्री’ के जरिये नियुक्ति में आरक्षण के सिद्धांत को लागू करने का मोदी सरकार ने फैसला किया है. बता दें कि सीधी भर्ती यानी की लैटरल एंट्री में विभिन्न सरकारी विभागों और मंत्रालयों में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है. ये ऐसे पद हैं जिन पर अमूमन IAS अफसरों को नियुक्त किया जाता है. इसके साथ ही इसमें आरक्षण के प्रावधान को लागू नहीं किया जाता था, इसी वजह से विवाद हुआ है.