जमशेदपुर : आज जब हम रतन टाटा को याद कर रहे हैं, तो उनकी उपलब्धियों से परे एक ऐसी शख्सियत की बात कर रहे हैं जिसने न सिर्फ उद्योग जगत में बल्कि सामाजिक जीवन में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी. 86 साल की उम्र में रतन टाटा का निधन सभी को स्तब्ध कर गया. उनके जाने से एक ऐसा खालीपन पैदा हुआ है जिसे भरना मुश्किल है. वे सिर्फ एक उद्योगपति नहीं थे, बल्कि इंसानियत के प्रतीक थे. उनकी कहानियों में उनके अविश्वसनीय व्यावसायिक फैसलों से ज्यादा उनके सरल, सच्चे और मानवीय व्यवहार की गूंज सुनाई देती है.
1. अवॉर्ड लेने से इनकार, बेजुबान का रखा ख्याल
रतन टाटा को उनके जीवन में कई पुरस्कारों से नवाजा गया, लेकिन एक ऐसा मौका आया जब उन्होंने अवॉर्ड लेने से इनकार कर दिया. साल 2018 में ब्रिटिश राजघराने ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित करने का फैसला किया. खुद प्रिंस चार्ल्स उन्हें बकिंघम पैलेस में यह अवॉर्ड देने वाले थे, लेकिन टाटा नहीं गए. वजह थी उनके पालतू कुत्तों की तबीयत. वे अपने कुत्तों को उस हालत में छोड़कर अवॉर्ड लेने नहीं जा सकते थे. जब प्रिंस चार्ल्स को यह बात पता चली, उन्होंने टाटा की तारीफ की और उन्हें महान इंसान कहा. यह घटना रतन टाटा के अद्वितीय व्यक्तित्व को दर्शाती है कि उनके लिए रिश्तों की अहमियत सबसे ऊपर थी.
2. गैंगस्टर से लड़ाई: अपने कर्मचारियों के लिए नायक बने टाटा
1980 के दशक की बात है, जब टाटा ग्रुप के कर्मचारियों को एक गैंगस्टर परेशान कर रहा था. उसने कर्मचारियों पर हमला किया, रंगदारी मांगी और टाटा यूनियन पर कब्जा करने की कोशिश की. जब हालात और बिगड़े, तो रतन टाटा खुद प्लांट पर पहुंच गए. उन्होंने कई दिनों तक वहां रहकर कर्मचारियों का हौसला बढ़ाया और गैंगस्टर के खिलाफ खड़े हो गए. अंततः वह गैंगस्टर गिरफ्तार हो गया. रतन टाटा ने अपने कर्मियों के साथ खड़े रहकर साबित किया कि वे सिर्फ एक बॉस नहीं, बल्कि एक सच्चे नेता थे.
3. बीमार कर्मचारी के लिए खुद प्लेन उड़ाने को तैयार
रतन टाटा एक ट्रेन्ड पायलट थे, और 2004 में उन्होंने यह सिद्ध भी किया. पुणे में टाटा मोटर्स के एमडी प्रकाश एम तेलंग की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन्हें तुरंत मुंबई ले जाना था, लेकिन एयर एंबुलेंस का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. तब रतन टाटा ने खुद प्लेन उड़ाने की पेशकश की. हालांकि बाद में एंबुलेंस का इंतजाम हो गया, लेकिन यह घटना दर्शाती है कि रतन टाटा अपने कर्मचारियों की सुरक्षा और भलाई के लिए कितने समर्पित थे.
4. टाइपराइटर से रिज्यूमे: टाटा के साथ सफर की शुरुआत
रतन टाटा का टाटा ग्रुप के साथ सफर भी दिलचस्प है. अमेरिका में सेटल होने की तैयारी कर चुके टाटा ने 1962 में अपनी बीमार दादी के चलते भारत वापसी की. उस वक्त वे आईबीएम में काम कर रहे थे. जेआरडी टाटा ने उन्हें ग्रुप में शामिल होने का प्रस्ताव दिया, और रतन टाटा ने टाइपराइटर से अपना रिज्यूमे तैयार कर भेजा. यहीं से उनकी यात्रा टाटा ग्रुप के साथ शुरू हुई, जो एक लंबी और प्रेरणादायक कहानी बनी.
5. अपमान से प्रेरणा: विदेशी कंपनी की खरीद
1998 में टाटा मोटर्स ने इंडिका लॉन्च की, लेकिन यह सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकी. कंपनी घाटे में चली गई, और रतन टाटा को इसे बेचने का विचार करना पड़ा. वे फोर्ड कंपनी के पास गए, जहां उन्हें अपमानित किया गया. फोर्ड के मालिक बिल फोर्ड ने उनसे कहा, “जिस व्यापार की आपको जानकारी नहीं है, आपने उस पर इतना पैसा क्यों लगाया?” यह टिप्पणी टाटा को भीतर तक झकझोर गई. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. 2008 में, वही टाटा ने फोर्ड की जगुआर और लैंड रोवर कंपनियों को खरीदकर दुनिया को दिखा दिया कि सच्ची सफलता क्या होती है.
6. 26/11 के पीड़ितों के प्रति सहानुभूति
26/11 के मुंबई हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. टाटा ग्रुप के कई कर्मचारी इस हमले में प्रभावित हुए. रतन टाटा ने बिना किसी प्रचार के 80 से अधिक परिवारों से मुलाकात की और उनके बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने का वादा किया. यह कदम केवल आर्थिक मदद का नहीं था, बल्कि उनके संवेदनशील और उदार व्यक्तित्व की झलक थी. टाटा ने कभी इस मदद का जिक्र नहीं किया, लेकिन उनके मानवीयता के उदाहरण ने उन्हें और भी महान बना दिया.
7. साधारण कर्मचारी की मदद
रतन टाटा का अपने कर्मचारियों के प्रति जो लगाव था, वह एक और किस्से से साफ झलकता है. एक साधारण कर्मचारी, जो न तो मैनेजर था और न ही बोर्ड का सदस्य, बीमार था. जब रतन टाटा को इस बात का पता चला, तो वे बिना किसी सुरक्षा इंतजाम के मुंबई से पुणे गए, उस कर्मचारी से मिले, उसकी हालत जानी और मदद का आश्वासन दिया. यह घटना बताती है कि टाटा के लिए हर कर्मचारी महत्वपूर्ण था, चाहे वह कितने भी छोटे पद पर क्यों न हो.
8. सोशल मीडिया पर विनम्रता का परिचय
रतन टाटा सोशल मीडिया पर भी सक्रिय थे. एक बार, जब उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपने मिलियन फॉलोअर्स होने की खबर साझा की, एक महिला ने उन्हें “छोटू” कहकर संबोधित किया. इस टिप्पणी को अन्य लोगों ने अपमानजनक समझा और महिला को ट्रोल करना शुरू कर दिया. लेकिन रतन टाटा ने खुद हस्तक्षेप किया और कहा कि वे महिला की सच्चाई और स्पष्टता की प्रशंसा करते हैं. उन्होंने सभी से आग्रह किया कि उसे सम्मान दें और उसकी भावनाओं की कद्र करें. इस घटना से स्पष्ट होता है कि टाटा आलोचना को भी विनम्रता से लेते थे और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करते थे.
9. अफवाह का सच
टी20 वर्ल्ड कप के दौरान एक अफवाह फैल गई कि रतन टाटा ने अफगानिस्तान के स्टार प्लेयर राशिद खान को 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है. सोशल मीडिया पर इस खबर के बाद लोग टाटा की तारीफ करने लगे. लेकिन कुछ ही घंटों बाद रतन टाटा ने खुद इस अफवाह का खंडन किया और कहा कि उन्होंने कोई ऐसी घोषणा नहीं की है. इस सच्चाई ने दिखाया कि वे झूठी वाहवाही में विश्वास नहीं रखते थे, बल्कि सच के पक्षधर थे.
10. इकोनॉमी क्लास में ट्रैवल
रतन टाटा अपने साधारण जीवन शैली के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने कई बार इकोनॉमी क्लास में यात्रा की, बिना किसी विशेष इंतजाम के. उनके साथ यात्रा कर रहे आम लोगों ने उनके साथ तस्वीरें खिंचवाईं, और टाटा ने इसे सहजता से स्वीकार किया. यह घटना उनके सरल और सादगीपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाती है, जो उन्हें एक असाधारण इंसान बनाता है.
11. लॉकडाउन में कंपनियों को आईना दिखाया
कोरोना काल में जब कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी की, तब रतन टाटा ने इस प्रवृत्ति की आलोचना की. उन्होंने कहा कि इस तरह की छंटनी व्यापार के लिए कोई समाधान नहीं है. उन्होंने कंपनियों से कहा कि उन्हें भविष्य की आपदाओं के लिए बेहतर तैयारी करनी चाहिए, ताकि इस तरह की स्थिति में लोगों को नौकरी से निकालने की जरूरत न पड़े.
12. गार्ड को डांट और आम आदमी को गले लगाया
रतन टाटा का एक और प्रेरणादायक किस्सा तब सामने आया जब उन्होंने एक साधारण आदमी को गले लगाया. एक बार, जब वे कहीं जा रहे थे, एक सुरक्षा गार्ड ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन रतन टाटा ने उसे डांटने के बजाय उसकी गलती माफ कर दी और उस आदमी से मिलकर उसे गले लगाया. यह घटना दिखाती है कि वे कितने जमीन से जुड़े हुए इंसान थे, और उनके लिए हर इंसान समान था.
रतन टाटा के जीवन के इन किस्सों से यह स्पष्ट होता है कि वे सिर्फ एक सफल उद्योगपति नहीं थे, बल्कि एक अद्वितीय इंसान थे जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों की भलाई और सेवा में बिताई. उनके लिए व्यापार से ज्यादा मानवीय मूल्य और रिश्ते महत्वपूर्ण थे, और यही उन्हें सच्चा नायक बनाता है.