नई दिल्ली: दीप्ति जीवनजी के पिता ट्रक क्लीनर थे। दीप्ति को जन्म से ही बीमारी थी, उनके माता-पिता को उन्हें अनाथालय में छोड़ने की सलाह दी गई थी। भारत ने पैरालंपिक में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है। पैरालंपिक गेम्स में 20 मेडल आए हैं। इतना ही नहीं अभी और मेडल आने बाकी हैं। भारत को महिलाओं की 400 मीटर टी20 क्लासिफिकेशन में स्प्रिंटर ज्योति जीवनजी ने ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। 21 वर्षीय खिलाड़ी ने फाइनल में 55.82 सेकंड में रेस पूरा करके सनसनी मचा दी। वह यूक्रेन और तुर्की की एथलीट्स से पीछे रहीं। तेलंगाना की रहने वाली दीप्ति का जन्म वारंगल जिले के कल्लेडा गांव में हुआ था। बचपन से ही दीप्ती एथलेटिक्स में काफी रूचि रखती थी। बौद्धिक रूप से कमजोर होने के कारण उन्हें गांव वालों और रिश्तेदारों से ताने सुनने पड़े। इन सभी कठिनाइयों को पार करके उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। इसमें नेशनल बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद का अहम योगदान रहा। उनकी एक सलाह से दीप्ति की पूरी दुनिया बदल गई।
कंस्ट्रकशन पाइप की डिलीवरी करके लौटे पिता तो मिली खुशखबरी
ज्योति जीवनजी मंगलवार (4 सितंबर) रात को जब ब्रॉन्ज मेडल जीतीं तो उनके पिता ट्रक क्लीनर जीवनजी यधागिरी अपने घर लौटे थे। उन्होंने जिले के दूसरे गांव में कंस्ट्रकशन पाइप की डिलीवरी पूरी की थी। ट्रक कर्मचारी अपनी पत्नी धनलक्ष्मी जीवनजी को पूरे दिन फोन करके दीप्ति के फाइनल के लिए बचे समय के बारे में पूछते रहे।जीवनजी यधागिरी ने बताया, ” भले ही यह हम सभी के लिए एक बड़ा दिन है, लेकिन मैं काम से छुट्टी नहीं ले सकता था। यही मेरी रोजी-रोटी है और पूरे दिन मैं दीप्ति के पेरिस में पदक जीतने के बारे में सोचता रहा और ड्राइवर एल्फर से कहता रहा कि वह अन्य दोस्तों और उनके परिवारों को दीप्ति के पदक का जश्न मनाने के लिए बुलाएंगे। उसने हमेशा हमें खुशी दी है और यह पदक भी उसके लिए बहुत मायने रखता है।”
दीप्ती के माता-पिता को उन्हें शक्ल सूरत के लिए सुनने पड़ते थे ताने :
27 सितंबर, 2003 को गांव की एक डिस्पेंसरी में इस कपल के पहले बच्चे का जन्म हुआ। बच्ची का सिर छोटा था और चेहरा कुछ अलग सा था। होंठ फटा हुआ और नाक भी सही नहीं थी। माता-पिता को अपने बच्चे की शक्ल-सूरत को लेकर गांव वालों और रिश्तेदारों के ताने सुनने पड़ते थे। 5,000 से ज्यादा की आबादी वाले इस गांव के निवासी कॉटन के साथ-साथ आम की खेती पर भी निर्भर हैं। आपको बता दें कि जीवनजी परिवार के पास आधा एकड़ जमीन है।
दीप्ती के माता-पिता को मजबूरन वो जमीन भी बेचनी पड़ी
यधागिरी अन्य कमाई के लिए गांव के खेतों में मजदूर का काम करते थे, लेकिन उनके पिता रामचंद्रिया की मृत्यु के बाद परिवार को अपनी जमीन का हिस्सा बेचना पड़ा। दीप्ति की मां बताती हैं, “जब दीप्ति का जन्म हुआ, तो गांव वालों और हमारे कुछ रिश्तेदारों ने उसके लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। उनमें से बहुत से लोग चाहते थे कि हम उसे अनाथालय में दे दें। जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, वह शारीरिक तौर पर काफी एक्टिव थीं, लेकिन जब दूसरे बच्चे उसे चिढ़ाते थे तो वह भावुक हो जाती थीं।” दीप्ती की ये कहानी हमें सिखाती है कि शारीरिक सौंदर्य से ऊपर इन्सान का चरित्र और उसकी मेहनत होती है। इतनी सारी मुश्किलों के बाद भी दीप्ती ने अपने माता-पिता का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया.