दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में माना है कि जजों से भी गलतियां हो सकती हैं और उन्हें स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने अपने एक पुराने आदेश में कुछ त्रुटियों को सुधारते हुए कहा कि अदालतों को बंद केस के बाद भी अपने आदेशों में सुधार करने का अधिकार है।
यह मामला इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस से जुड़ा था, जहां सुप्रीम कोर्ट ने पहले कर्ज वसूली और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में कार्रवाई पर रोक लगाई थी। अब कोर्ट ने स्वीकार किया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सुनवाई का मौका दिए बिना ही आदेश जारी किया किया गया था। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने इस गलती को सुधारा और बताया कि जब पक्षकार हाई कोर्ट का रुख करते हैं, तब अंतरिम सुरक्षा का फैसला हाई कोर्ट पर छोड़ा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह न्यायिक प्रणाली का हिस्सा है कि जज अपनी गलती को मानें और उसे सुधारें। यह कदम न्यायपालिका में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने का काम करेगा। इस फैसले ने एक नया मापदंड स्थापित किया है, जिससे यह संदेश गया है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं, यहां तक कि जज भी।