नई दिल्ली : हाल ही में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्सर्वादी) के महासचिव सीताराम येचुरी का निधन हो गया, और उनके परिवार ने उनकी बॉडी डोनेट करने का निर्णय लिया, जिससे कई लोगों को नई जिंदगी मिल सकती है। यह निर्णय न केवल उनके परिवार की सहानुभूति को दर्शाता है, बल्कि अंगदान के महत्व को भी उजागर करता है।
डोनेट की गई बॉडी में तेजी से बदलाव होते हैं। मौत के बाद, शरीर में डीकम्पोज़ होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसे सुरक्षित रखने के लिए फॉर्मेलिन का लेप लगाया जाता है, जिससे यह लकड़ी जैसी हो जाती है। यह प्रक्रिया बैक्टीरिया और कीटाणुओं से बचाने में मदद करती है। इसके बाद, यह बॉडी मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई में उपयोग की जाती है। ऐसा नहीं है कि यह लेप हमेशा के लिए सुरक्षित रखता है हवा से संपर्क में आने पर यह धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है।
अंगदान की प्रक्रिया दो तरीकों से की जा सकती है: पहले, कोई भी व्यक्ति अपनी जीवित अवस्था में अंगदान का संकल्प ले सकता है। इसके लिए उसे एक फॉर्म भरना होता है, जिसमें दो गवाहों की जरूरत होती है, जिनमें से एक करीबी रिश्तेदार होना चाहिए। दूसरे, परिवार वाले भी व्यक्ति की मौत के बाद अंगदान कर सकते हैं, बशर्ते व्यक्ति ब्रेन डेड हो।
भारत में अंगों का दान करने की समय सीमाएं भी महत्वपूर्ण हैं। मौत के बाद विभिन्न अंगों के ट्रांसप्लांट के लिए समय सीमा इस प्रकार है:
– हार्ट: 4 घंटे
– फेफड़े: 4-6 घंटे
– आंत: 6 घंटे
– पैंक्रियाज: 6 घंटे
– लिवर: 24 घंटे
– किडनी: 72 घंटे
– कॉर्निया: 14 दिन
– हड्डी और स्किन: 5 साल
– हार्ट वॉल्व: 10 साल तक
भारत में अंगदान को कानूनी मान्यता Transplantation of Human Organs & Tissues Act, 1994 के तहत मिली है। इस कानून के तहत अंगों की तस्करी पर सख्त पाबंदी लगाई गई है। किसी भी व्यक्ति के ब्रेन डेड होने पर एक प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, और इसके बाद परिवारवालों की सहमति से ही अंगों को दान किया जा सकता है।
अंगदान न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह दूसरों के जीवन को भी बचाने का एक साधन है। सीताराम येचुरी के परिवार का यह निर्णय सचमुच प्रेरणादायक है, जो हमें इस महत्वपूर्ण कार्य के प्रति जागरूक करता है।