नीट यूजी की परीक्षा प्रणाली पर उठे सवाल, विशेषज्ञों ने उठाई बदलने की मांग
जमशेदपुर: नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) में गड़बड़ी सामने आने के बाद इसकी परीक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए नीट की परीक्षा परीक्षा प्रणाली सही नहीं है। इसमें सुधार की जरूरत है। विशेषज्ञों का कहना है कि पेपर लीक मामला सामने आने के बाद अब इस परीक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत शिद्दत से महसूस की जाने लगी है। विशेषज्ञ चाहते हैं कि नीट की परीक्षा को सिंगल टियर से हटाकर डबल टियर में लाया जाए और उसके प्रश्न के पैटर्न में भी चेंज किए जाएं।
नीट की परीक्षा डबल टियर करने की मांग
मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए परीक्षा पहले सीबीएसई कंडक्ट कराता था। ये परीक्षा ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट के नाम से होती थी। सीबीएसई के पूर्व डायरेक्टर अशोक गांगुली का कहना है कि नीट की परीक्षा ऑफलाइन सिंगल टियर है। इसका पैटर्न बदलने की जरूरत है। इस परीक्षा में 10 लाख से अधिक छात्राएं बैठते हैं। इसलिए इसे डबल टियर में किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए जेईई दो परीक्षा लेती है। यह परीक्षाएं जेईई मेन और जेईई एडवांस्ड हैं। उनका कहना है कि नीट को भी दो चरण में बदलना होगा। पहले चरण का एग्जाम देने के बाद सफल छात्राओं को दूसरे चरण का एग्जाम देना होगा। ताकि, डॉक्टर बनने के लिए उनके एप्टीट्यूड का पता चल सके। एनसीईआरटी के पूर्व डायरेक्टर और शिक्षा विद प्रोफेसर कृष्ण कुमार का कहना है कि नीट की परीक्षा भविष्य के डॉक्टर को चुनने के लिए की जाती है।
मूल्यांकन सिस्टम को भी किया जाए दुरुस्त
इसलिए छात्र-छात्राओं के मूल्यांकन का सिस्टम भी ठीक होना चाहिए। नीट के एमसीक्यू सिस्टम पर उनका कहना है कि परीक्षार्थी से उम्मीद की जाती है कि प्रश्न पढ़ते ही वह फौरन सही जवाब पहचान ले। यह तभी होगा जब परीक्षार्थी ने किताब की खूब पढ़ाई की हो। उनका कहना है कि यह सिस्टम नीट की परीक्षा के लिए उचित नहीं है। डॉक्टर का काम सोच की प्रक्रिया से गुजरता है।
नीट की परीक्षा में चार चरणों में हुई है गड़बड़ी
करियर काउंसलर विकास कुमार का कहना है कि नीट एग्जाम में चार चरणों में गड़बड़ी हुई है। पहले इसका पेपर लीक किया गया। दूसरी गड़बड़ी ये है कि साल्वर गैंग ने पेपर सॉल्व किया। एनटीए ने बिना बताए ग्रेस मार्क दिए गए। ग्रेस मार्क के चलते रिजल्ट की गड़बड़ी पकड़ में आई और चौथी गड़बड़ी इस साल का रैंक सिस्टम है। उनका कहना है कि अगर 6 साल के स्कोर पर पिछले साल 30000 के आसपास रैंक थी। तो इसी स्कोर पर इस बार 80000 के आसपास रैंक है। रैंक में यह फर्क घोटाला को दर्शाती है। कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं कि जिस रैंक पर पहले एम्स मिलता था। उस पर अब देश के कुछ टॉप कॉलेज मिलेंगे। जिन रैंक पर टॉप 10 के कॉलेज में प्रवेश मिलता था उस पर राज्य के मेडिकल कॉलेज में सीट मिलेगी और जिस रैंक पर राज्य के कॉलेज में सीट मिलती थी। उस पर अब कोई कॉलेज नहीं मिलेगा।