मोदी सरकार का बजट: युवाओं को रोज़गार में मिलेगी कितनी मदद?
नई दिल्ली: लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर सत्ता में आई मोदी सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया है। इसके बारे में विशेषज्ञों की राय दी जा रही है। इस बारीकियों भरे बजट में तीन बड़ी घोषणाएं हैं, जिन पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
बजट में दो मुख्य एलान किए हैं जिनका लक्ष्य है देश की अर्थव्यवस्था की दो बड़ी समस्याओं को सुधारना। बजट ने बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष वित्तीय मदद प्रदान करने की घोषणा की है, जो सरकार की राजनीतिक मजबूरी की ओर इशारा कर रहा है।
बजट में आर्थिक मामलों के प्रति भी विस्तार से बातचीत की गई है, जिससे आम जनता को भी फायदा हो सके।
बजट के इस नए प्रस्ताव और घोषणाओं को लेकर देशभर में बहस जारी है, जहां से देश की आर्थिक हालत को सुधारने की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं।
पहले पीएलआई और अब ‘ईएलआई’: नई बजट में उम्मीदें
मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में युवाओं के लिए नए प्रयासों को मंज़ूरी दी है, जिसमें रोज़गार को बढ़ाने और कामकाज़ी लोगों के कौशल विकास को महत्वपूर्ण बातें मानी गई हैं। बजट में पांच विशेष स्कीमों के तहत दो लाख करोड़ रुपये का निर्धारण किया गया है, जिनका उद्देश्य नौकरियां बढ़ाना है और उन्हें मजबूत बनाना है।
पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव’ (पीएलआई) स्कीम को लागू किया था, जो विनिर्माण को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती थी। इस बार, ‘एम्पलॉयमेंट लिंक्ड इन्सेंटिव’ (ईएलआई) की घोषणा की गई है, जिसका लक्ष्य युवाओं को नौकरियां प्रदान करना है।
इस बजट में एक और महत्वपूर्ण घोषणा यह है कि टैक्स पेयर्स के लिए राहत प्रदान की गई है। यहां यह भी बात देखने योग्य है कि बिना टैक्स दिए हुए सिर्फ़ दो-ढाई करोड़ लोगों के लिए राहत दी गई है, जो कि देश की कुल आबादी का एक छोटा सा हिस्सा है। इसके अलावा, बजट ने महंगाई के दबाव को कम करने और वस्तुओं की मांग में सुधार के लिए भी उपाय बताए हैं।
अब यह देखना है कि इन प्रस्तावों को कैसे अमल में लाया जाता है और उनका आम जनता के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
कितनी कारगर है रोजगार के लिए पहल ?
लोकसभा चुनावों ने स्पष्ट रूप से दिखा दिया है कि रोज़गार भारतीय सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही हर साल दो करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था, लेकिन इस वादे को पूरा करने में सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
विशेषज्ञों के मुताबिक़, नोटबंदी, जीएसटी की खामियों और कोविड-19 से पैदा हुई अर्थव्यवस्था की उथल-पुथल ने सरकार के रोज़गार वादे पर बड़ा असर डाला। इस समस्या को हल करने के लिए मोदी सरकार ने नई एक्सपेरिमेंटल अनुप्राणन स्कीम ‘ईएलआई’ (एम्पलॉयमेंट लिंक्ड इन्सेंटिव) की घोषणा की है।
इस स्कीम के तहत, पहली बार नौकरी प्राप्त करने वाले युवाओं को सरकार उनकी पहली महीने की सैलरी को उनके बैंक खाते में ट्रांसफर करेगी। इससे नौकरियां प्रदान करने वाली कंपनियों पर भार कम पड़ेगा और वे युवाओं को नौकरी देने के लिए प्रेरित होंगी। यह राशि तीन किस्तों में ट्रांसफर की जाएगी, जिसकी अधिकतम राशि 15,000 रुपये तक हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस स्कीम से लगभग 30 लाख युवाओं को फायदा मिलने की उम्मीद है।
महंगाई, मध्य वर्ग और टैक्स राहत: आम जनता के लिए एक नया कदम
महंगाई की मार आम जनता को हर वर्ग में महसूस हो रही है, लेकिन इसका सबसे अधिक असर ग़रीब और मध्य वर्ग के उपभोक्ताओं पर पड़ता है। इस परिस्थिति में सरकार ने टैक्स में की गई कटौती के माध्यम से मध्य वर्ग को थोड़ी राहत प्रदान की है।
मध्य वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए यह नई राहत काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उनकी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति में सुधार होगा। सरकार का मानना है कि मध्य वर्ग ही वह वर्ग है जो सबसे ज़्यादा उत्पादों और सेवाओं का उपभोग करता है और उनके हाथ में पैसा बचता है, जिससे वाणिज्यिक गतिविधियों में वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
इस नई राहत से यह भी अपेक्षित है कि व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि होगी, जिससे नए रोज़गार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। इस उपाय से आम जनता की आर्थिक स्थिति में सुधार आने की उम्मीद है और साथ ही राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी नई ऊर्जा मिलेगी।
इसके साथ ही, विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रस्ताव से विभिन्न वर्गों के लोगों को अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावनाएं मिलेंगी, जिससे देश का समृद्धि और समाज का विकास गति पा सकेगा।
मज़बूत नहीं मजबूर सरकार का बजट
विश्लेषकों के मुताबिक़, नरेंद्र मोदी सरकार के नए बजट ने एनडीए के दो घटक दलों, जनता दल (यूनाइटेड) और तेलुगू देशम के समर्थन तक टिकी है। इसके परिणामस्वरूप, बिहार को 59,000 करोड़ रुपये और आंध्र प्रदेश को चंद्रबाबू नायडू की सरकार को 15,000 करोड़ रुपये की विशेष वित्तीय मदद दी गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस बजट को राजनीतिक बजट माना जा रहा है क्योंकि इसमें एक राजनीतिक मजबूरी का साफ़ प्रतिबिम्ब है। उनका मानना है कि इन दोनों राज्यों को इस वित्तीय समर्थन की आवश्यकता थी, जबकि बाकी राज्यों के हिस्से में इस बार कुछ भी नहीं आया है।
विश्लेषक इसे ‘मज़बूत नहीं, मजबूर सरकार का बजट’ बता रहे हैं, कहते हैं कि इसमें सरकारी नीतियों को अपनी राजनीतिक मजबूरी के हिसाब से स्थापित किया गया है। यह वित्तीय योजनाएँ और समर्थन स्थानीय राजनीतिक माहौल को मजबूती प्रदान कर सकती हैं, लेकिन उन्हें नए स्तर पर सरकार की मजबूरी के चलते स्वीकार किया जाना चाहिए।
इस बजट के माध्यम से न सिर्फ़ राज्यों को वित्तीय समर्थन मिलेगा, बल्कि यह भी देखा जाएगा कि इससे राज्यों के विकास में किस प्रकार सहायता होगी और देश की अर्थव्यवस्था को कैसे बढ़ावा मिल सकता है।