नई दिल्ली: हाल ही में Neurology जर्नल में एक स्टडी आई है, जिसमें बताया गया है कि LGBTQ+ लोग, यानी जो लोग गे, लेस्बियन, बाइसेक्सुअल या ट्रांसजेंडर हैं, उन्हें उम्र के साथ डिमेंशिया, डिप्रेशन और स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। रिसर्च में 3,50,000 से अधिक सिसजेंडर और हेटेरोसेक्सुअल लोगों के डेटा की तुलना की गई, जबकि लगभग 40,000 लोगों ने खुद को सेक्सुअल माइनॉरिटीज के रूप में पहचाना और करीब 4,000 लोग जेंडर माइनॉरिटीज में शामिल थे।
स्टडी के नतीजों से पता चला कि इन माइनॉरिटीज को ब्रेन से जुड़ी समस्याओं का 15% अधिक खतरा है। खासकर, ट्रांसजेंडर महिलाओं को हेटेरोसेक्सुअल और सिसजेंडर लोगों की तुलना में स्ट्रोक का 68% अधिक खतरा है।
इसका बड़ा कारण है कि LGBTQ+ लोग अक्सर भेदभाव और अस्वीकृति के डर के चलते मानसिक तनाव का सामना करते हैं। डॉ. बिली कासेरेस का कहना है कि ये तनाव डिप्रेशन को बढ़ा सकता है, जो बाद में डिमेंशिया और स्ट्रोक का कारण बन सकता है।
हालांकि, कई LGBTQ+ लोग स्वास्थ्य सेवाएं लेने में संकोच करते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य की समस्याएं समय पर नहीं मिल पातीं। इस स्टडी के प्रमुख लेखक, डॉ. शुफान हुओ, बताते हैं कि इन लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए।
इनमें शामिल हैं: धूम्रपान से बचना, सक्रिय जीवनशैली अपनाना, वजन, ब्लड प्रेशर और शुगर पर ध्यान देना, मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना और ऐसे डॉक्टरों से इलाज कराना जो LGBTQ+ समुदाय की जरूरतों को समझते हों। इन कदमों से लोग अपनी उम्र के साथ बेहतर स्वास्थ्य बनाए रख सकते हैं।