भारत में इन दिनों हर घर की एक कहानी कॉमन है। वह है मोबाइल पर चिपके रहना। चाहे चार साल का बच्चा हो या फिर साठ साल का बुजुर्ग। हर कोई इन दिनों अपने जीवन का अधिकांश समय मोबाइल स्क्रॉल करने में बिता रहा है। यही कारण है कि पांच साल के बच्चे का भी स्क्रीन टाइम चार से पांच घंटा हो रहा है जबकि कॉलेज गोइंग स्टूडेंट का स्क्रीन टाइम 8 घंटे तक पहुंच रहा है। यह खतरनाक और अलार्मिंग स्थिति है। इससे बच्चों को मायोपिया की बीमारी हो रही है। मायोपिया में दूर की चीजें साफ दिखाई नहीं देती हैं। एम्स की गाइडलाइंस के अनुसार एक दिन में अधिकतम दो घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होनी चाहिए। आई एक्सपर्ट डॉ. विवेक केडिया का कहना है कि जितनी छोटी स्क्रीन होगी, उतनी समस्या बढ़ेगी। बड़ी स्क्रीन के बजाय अगर आप मोबाइल पर काम करते हैं तो यह आंखों पर ज्यादा प्रेशर डालता है।
मोबाइल आपका सबसे बड़ा दुश्मन
आज के दौर में समय का अगर सबसे बड़ा कोई दुश्मन है तो वह है मोबाइल। एम्स के डॉक्टरों ने हिदायत देते हुए कहा कि जिस प्रकार से लोग मोबाइल पर समय दे रहे हैं, अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो वर्ष 2050 तक भारत के 40 से 45 प्रतिशत बच्चे मायोपिया के शिकार हो जाएंगे। सबकी आंखों पर चश्मा होगा। एम्स के आरपी सेंटर के चीफ डॉ. जी. एस. तितियाल बताते हैं कि वर्ष 2015-16 तक 10 से 12 प्रतिशत स्कूली बच्चों में मायोपिया होता था, लेकिन कोरोना के बाद से बच्चों का डिजिटल टाइम काफी बढ़ गया है। जमशेदपुर के प्रसिद्ध रेटिना सर्जन डॉ. अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि मायोपिया में आंख की पुतली का साइज बढ़ जाता है और इसकी वजह से कोई भी प्रतिबिंब रेटिना पर नहीं बल्कि इससे थोड़ा अलग हटकर बनता है। जिस वजह से दूर की चीज धुंधली दिखती है, लेकिन पास की चीजें ठीक दिखती हैं।
एक घंटे से अधिक ना हो चार साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम
आदित्यपुर के त्रि नेत्रम आई हॉस्पिटल के स्पेशलिस्ट डॉ. विवेक केडिया कहते हैं कि इन दिनों छोटे बच्चों में आंखों से संबंधित बीमारियां बढ़ी हैं। बच्चे हों या फिर बड़े, वे लगातार छोटी स्क्रीन यानी मोबाइल पर काम करते रहते हैं, अपनी पढ़ाई करते हैं, गेम्स खेलते हैं, रील्स देखते हैं, वेब सीरीज देखते हैं। इससे कब उनका स्क्रीन टाइम कई घंटे का हो जाता है, उन्हें पता ही नहीं चलता। अब बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी कम हो गई है, वे धूप में कम जा रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के आधार पर छपे एक लेख के अनुसार दो से चार साल के बच्चों का एक दिन में एक घंटा स्क्रीन टाइम होना चाहिए।
दो घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए स्क्रीन टाइम
चार से अधिक साल के बच्चों के लिए एक दिन में दो घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं होनी चाहिए। इससे अधिक स्क्रीन का इस्तेमाल करने से आंखों के साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है। डॉ. विवेक केडिया ने कहा कि उनकी यह सलाह होगी कि 15 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए दिन में दो घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होनी चाहिए। हर 20 मिनट पर 20 सेकंड की ब्रेक लेनी चाहिए और 20 मीटर दूर तक देखनी चाहिए। इससे आंखों को रिलैक्स मिलता है और मसल्स पर जोर भी नहीं पड़ता। डॉ. विवेक केडिया ने कहा कि आंखों की रोशनी को मेंटेन रखने के लिए यह जरूरी है कि सुबह में उठ कर सूर्य की पहली किरण को खुली आंखों से अगर देखी जाए तो उससे भी काफी फायदा होता है।
अंधेरे में फोन चलाने से हो सकता है अंधापन
अगर आप अक्सर अंधेरे में स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं तो आप सावधान हो जाइए, क्योंकि यह आपको क्षणिक अंधेपन का शिकार बना देगा। एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो लोग भी रात में बेड पर लेटकर तीस मिनट तक लगातार मोबाइल पर नजरें गड़ाए रखते हैं, उनको क्षणिक अंधेपन का सामना करना पड़ सकता है। डॉक्टरों ने यह सुझाव दिया है कि अगर रात में आप कमरे की लाइट ऑफ कर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो कोशिश करें कि ऐसा नहीं करें। या फिर करें भी तो स्मार्टफोन की स्क्रीन को डार्क रखें, यानी ब्राइटनेस को बिल्कुल खत्म कर दें। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे एक रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टरों के पास अब तक इस तरह के दो केस आ चुके हैं। दोनों महिलाएं थीं। डॉक्टर का कहना था कि ‘क्षणिक अंधापन’ आंखों को काफी नुकसान पहुंचाता है। हालांकि डॉक्टर यह भी सलाह देते हैं कि अगर स्मार्टफोन का इस्तेमाल सावधानी से किया जाए तो इस समस्या से बचा जा सकता है।
बच्चों में पैदा करें आउटडोर एक्टिविटी की चाहत
इस समस्या से कैसे निजात पा सकते हैं? डॉ. विवेक केडिया कहते हैं कि आजकल बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी बंद हो गई है, जिस वजह से खाली समय में बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल में एक पीरियड आउटडोर गेम्स का जरूर होना चाहिए और घर पर भी बच्चे रोजाना एक घंटे कोई भी आउटडोर खेल जरूर खेलें। इससे बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास होने के साथ ही उनमें लीडरशिप की भावना भी डेवलप होती है।
तीन साल तक के बच्चों को न दें मोबाइल
वहीं, स्कूलों को साल में एक बार सभी का विजन टेस्ट स्क्रीनिंग करानी चाहिए। जो बच्चे चश्मे का इस्तेमाल करते हैं, उनकी जांच एक साल में जरूर होनी चाहिए, क्योंकि नंबर बढ़ने का खतरा रहता है। डॉक्टरों के मुताबिक अगर आंख को बेहतर रखना है तो 3 साल से पहले के बच्चों का कोई स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए। 6 साल से कम उम्र के बच्चे इंटरनेट का प्रयोग नहीं करें, यह सुनिश्चित होना चाहिए। 9 साल से पहले के बच्चे वीडियो गेम नहीं खेलें, जबकि 12 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया का कोई प्रयोग नहीं करें, इस बात का ख्याल माता-पिता के साथ ही टीचर को भी करना चाहिए।
बेडरूम में मत लगाएं टीवी
सबसे पहला असर पड़ता है कि बच्चों की आंखों की रोशनी कम हो रही है। स्क्रीन को नजदीक और एकटक देखने से आंखें ड्राई होने लगती हैं। छोटे बच्चों में स्पीच डिसऑर्डर या देर से बोलने की समस्या आती है। उनमें चिड़चिड़ेपन की समस्या आने लगती है। मोबाइल पर लगे रहने की वजह से वे अच्छी नींद भी नहीं लेते हैं, इसका असर उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है। इससे बचाव के लिए जरूरी है कि पैरेंट्स बच्चों को फिजिकल एक्टिविटी के लिए प्रेरित करें। मोबाइल, टैबलेट या टीवी का प्रयोग किसी भी सूरत में देर रात तक बेडरूम में नहीं करें। अगर आप यह सोचेंगे कि आप बच्चों को मोबाइल से दूर रखें और आप मोबाइल पर चिपके रहें तो इससे बात नहीं बनेगी। पहले आपको खुद को बदलना होगा।
पहले खुद अपनी आदत बदलें अभिभावक
बच्चे ज्यादातर समय अपने पैरेंट्स के साथ बिताते हैं। ऐसे में वह अच्छी और बुरी आदतें अपने माता-पिता से ही सीखते हैं। इसलिए आपको भी बच्चे के सामने फोन से दूरी बनानी होगी। कई बार पैरेंट्स कहते हैं कि उनके बच्चे के हाथ में जब तक मोबाइल नहीं आ जाती है तब तक वे खाना नहीं खाते हैं। बच्चे भूखे नहीं रहें, इसके लिए मजबूरी में बच्चे को मोबाइल देना पड़ता है। डॉक्टरों के साथ ही चाइल्ड काउंसलरों का मानना है कि आप ऐसा बिल्कुल नहीं करें। बच्चे में किसी भी चीज की आदत तेजी से लगती है। कोशिश करें कि छोटी उम्र से ही उनका यह आदत डेवलप नहीं हो। अगर डेवलप हो भी गया है तो उसे छुड़ाने के लिए आप कठोर बनें, बच्चे के हित के लिए अपने फैसले पर अडिग रहें। बच्चों को मोबाइल से दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप उन्हें बिजी रखें। उनके पास अगर खाली समय है तो उन्हें उनके इंट्रेस्ट के अनुसार फिजिकल एक्टिविटी करवा सकते हैं, डांस क्लास, म्यूजिक क्लास, पेंटिंग, सिंगिंग के साथ ही कई सारी एक्टिविटी से जोड़ सकते हैं। इससे उनका ध्यान और समय दूसरी तरफ शिफ्ट हो जाएगा। लांग टर्म में इसका सकारात्मक असर उनके ओवरऑल डेवलपमेंट पर पड़ेगा।