परिचय
जब रोम जल रहा था, तो नीरो सुख और चैन की बांसुरी बजा रहा था. यह कहावत रोमन सम्राट नीरो के बारे में मशहूर है, लेकिन कुछ यही हाल झारखंड के हुक्मरानों का भी है। झारखंड के एक-दो नहीं बल्कि पांच विश्वविद्यालयों में स्थायी कुलपति नहीं हैं। इससे राज्य के करीब 5 लाख विद्यार्थी सीधे प्रभावित हो रहे हैं। इस वीडियो में हम आपको बताएंगे कि कैसे राज्य की उच्च शिक्षा व्यवस्था अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। नमस्कार, आप देख रहे हैं “पढ़ेगा इंडिया”, जहां हम देश के युवाओं के हक और हकूक की बात करते हैं।
झारखंड के विश्वविद्यालयों की स्थिति
झारखंड के पांच विश्वविद्यालय बिना स्थायी कुलपति के संचालित हो रहे हैं। रांची यूनिवर्सिटी और जमशेदपुर वीमेंस यूनिवर्सिटी को छोड़कर, राज्य के किसी भी विश्वविद्यालय में कुलपति नहीं हैं। यह संख्या छह थी, लेकिन पिछले सप्ताह बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के स्थायी कुलपति प्रो. रामकुमार सिंह ने पदभार संभाला। इससे पहले यहाँ भी स्थायी कुलपति नहीं थे और पदभार प्रतिकुलपति प्रो. पवन कुमार पोद्दार के पास था।
प्रभावित विश्वविद्यालय
- विनोवा भावे यूनिवर्सिटी
- कोल्हान यूनिवर्सिटी
- कोयलांचल यूनिवर्सिटी
- नीलांबर-पीतांबर यूनिवर्सिटी
- सिदो-कान्हू यूनिवर्सिटी
इन विश्वविद्यालयों में पिछले एक साल से कोई स्थायी कुलपति नहीं हैं। राजभवन द्वारा जिन लोगों को वीसी का प्रभार दिया गया है, उन्हें सिर्फ वेतन और पेंशन के अलावा सिर्फ रूटीन कार्य देखने को कहा गया है, जिससे छात्र हित और शिक्षकों के कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
कोल्हान विश्वविद्यालय की स्थिति
कोल्हान विश्वविद्यालय की स्थिति
कोल्हान विश्वविद्यालय में कुलपति का पद मई 2023 से खाली है। पूर्व कुलपति डॉ. गंगाधर पांडा के रिटायर होने के बाद अब तक किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी है। राजभवन द्वारा कुलपति का प्रभार कोल्हान आयुक्त को सौंपा गया है, जो केवल वेतन, पेंशन और अन्य रुटीन कार्य की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। नीतिगत फैसले लेने का अधिकार उन्हें नहीं है, जिससे विश्वविद्यालय में कई महत्वपूर्ण कार्य ठप हो गए हैं। विश्वविद्यालय का समग्र विकास नहीं हो पा रहा है।
अन्य महत्वपूर्ण पदों का अभाव
विश्वविद्यालय में प्रोवीसी, रजिस्ट्रार, फाइनांस ऑफिसर, और सीसीडीसी के पद भी रिक्त हैं। सभी पद प्रभारी के भरोसे चल रहे हैं, जिससे विश्वविद्यालय की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है। स्थायी कुलपति नहीं होने से विद्यार्थियों को समय पर डिग्री सर्टिफिकेट और प्रमाण पत्र नहीं मिल पा रहे हैं। प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी कई काम प्रभावित हो रहे हैं।
कुलपति नियुक्ति की प्रक्रिया
राज्य के विश्वविद्यालयों में वीसी और प्रोवीसी की नियुक्ति के प्रयास किए गए। इसके लिए 26 जुलाई 2021 को आवेदन मांगे गए थे। सभी उम्मीदवारों का इंटरव्यू जून 2022 में झारखंड जुडिशियल एकेडमी में हुआ। तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने सर्च कमेटी का गठन किया, जिसने पदों के लिए तीन-तीन लोगों के नाम राजभवन को भेजे। हालाँकि, 18 फरवरी 2023 को राज्यपाल रमेश बैस का स्थानांतरण हो गया और नए राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने नियुक्ति प्रक्रिया की समीक्षा की। सर्च कमेटी द्वारा सौंपे गए नामों के पैनल पर विचार के बाद नियुक्ति प्रक्रिया रद्द कर दी गई और नए सिरे से आवेदन मंगाने का आदेश दिया गया। वर्तमान में विभागीय स्तर पर कार्य चल रहा है, लेकिन अभी तक नियुक्ति नहीं हो सकी है।
विश्वविद्यालय में वीसी नहीं होने के प्रभाव
शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्य
- सिंडिकेट, फाइनेंस कमेटी, एकेडमिक काउंसिल, एग्जामिनेशन बोर्ड, बिल्डिंग कमेटी की बैठकें नहीं हो रही हैं।
- विद्यार्थियों का दीक्षांत समारोह लटका हुआ है।
- छात्र संघ का चुनाव नहीं हो पा रहा है।
वित्तीय और प्रशासनिक प्रभाव
- वित्तीय मामलों पर निर्णय नहीं लिए जा रहे हैं।
- सिलेबस से संबंधित निर्णय लंबित हैं।
साफ-सफाई और अन्य सेवाएं
- कॉलेजों में आउटसोर्स पर सफाई कर्मियों और सुरक्षाकर्मियों का रिन्युअल नहीं हो रहा है।
- कॉलेजों में गंदगी का अंबार लगा हुआ है।
निष्कर्ष
झारखंड में उच्च शिक्षा बेहाल है। सरकार के दावे और वायदे अनवरत जारी हैं, लेकिन शिक्षा की बुनियादी व्यवस्था को दुरुस्त करने के बजाय जिम्मेदार लोग समस्याओं को हल करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। इसका सीधा असर विद्यार्थियों पर पड़ रहा है और वे दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक है कि जल्द से जल्द स्थायी कुलपति और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति की जाए।