झारखंड को खेलो इंडिया योजना के तहत मिली नाइंसाफी , गुजरात को मिला बंपर फंड
खेलो इंडिया योजना के बजट आवंटन को लेकर झारखंड और गुजरात के बीच भारी असमानता की खबरें सामने आई हैं, जिससे देशभर में विवाद और राजनीति का माहौल बन गया है। खेल क्षेत्र में भी राजनीति के असर की चर्चा तेज हो गई है, खासकर जब झारखंड को महज 9 करोड़ 63 लाख रुपये का बजट आवंटित किया गया है, जबकि गुजरात को 426 करोड़ रुपये का फंड दिया गया है।
झारखंड, जो देशभर में क्रिकेट, तीरंदाजी, हॉकी और पर्वतारोहण के लिए जाना जाता है, ने खेल के क्षेत्र में कई प्रसिद्ध खिलाड़ियों को जन्म दिया है। महेंद्र सिंह धोनी, सौरभ तिवारी, वरुण एरॉन, इशान किशन, दीपिका कुमारी, पूर्णिमा महतो, शहबाज नदीम, जयपाल सिंह मुंडा, सलीमा टेटे, और प्रेमलता अग्रवाल जैसे नाम झारखंड के खेल की पहचान हैं। इसके बावजूद, केंद्र सरकार की खेलो इंडिया योजना के तहत झारखंड को न्यूनतम बजट आवंटित किया गया है, जिससे राज्य में खेलों के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
दूसरी ओर, गुजरात को पेरिस ओलंपिक के लिए सिर्फ दो खिलाड़ी चुने गए हैं, फिर भी उसे खेलो इंडिया योजना के तहत बंपर फंड मिला है। इस असमानता ने झारखंड के नेताओं और खेल प्रेमियों के बीच नाराजगी पैदा कर दी है। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा है कि झारखंड को सबसे कम राशि आवंटित की गई है, जो अन्यायपूर्ण है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह खेल के क्षेत्र में राजनीति का हिस्सा है।
झारखंड को मात्र 9 करोड़।
राज्यों में सबसे छोटे गोवा के बाद – सबसे कम
यह सरासर अन्याय नहीं तो फिर क्या है ? https://t.co/VvDP7sbLxV
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) August 9, 2024
झारखंड के खिलाड़ी और खेल विशेषज्ञ भी इस असमानता को लेकर मुखर हो गए हैं। उनका कहना है कि खेल का कोई जाति, धर्म या राज्य से संबंध नहीं होता। खिलाड़ियों का उद्देश्य अपने देश के लिए खेलना होता है, और उनके प्रदर्शन से पूरा देश गर्वित होता है। उन्होंने कहा कि बजट आवंटन में इस भेदभाव का खेल पर दूरगामी बुरा असर पड़ेगा।
केंद्र सरकार की खेलो इंडिया योजना का उद्देश्य देशभर में स्कूली स्तर पर खिलाड़ियों को उभारना है। इस योजना के तहत पंचायत, प्रखंड, जिला और राज्य स्तर पर खेल आयोजन किए जाते हैं, जो खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान करते हैं। लेकिन झारखंड को इस योजना के तहत ठेंगा दिखाए जाने से खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों में निराशा फैल गई है।