जमशेदपुर: ये अनसुनी कहानी है। टाटा समूह के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे जेआरडी टाटा की. जेआरडी टाटा अपने प्रतिद्वंदी से तो हार गए लेकिन उन्होंने एक दोस्त जरूर जीत लिया. जेआरडी टाटा देश के पहले फ्लाइंग लाइसेंस नंबर हासिल करने वाले शख्स थे. वह भी एक जिप्सी मोथ विमान में कराची से लंदन तक शुरू होने वाली उड़ान प्रतियोगिता के उम्मीदवारों में से एक थे. इसके साथ ही इस उड़ान प्रतियोगिता में एस्पी इंजीनियर भी प्रतिभागी थे. एस्पी उस दौरान किशोरावस्था में थे. उन्होंने इस उड़ान की लंदन से विपरीत दिशा में शुरुआत की थी.
अपने साक्षात्कार में ऑल इंडिया रेडियो को जेआरडी टाटा ने बताया था कि एस्पी इंजीनियर बहुत ही छोटा था, उस वक्त वह किशोरावस्था में था. उसने उड़ान की शुरुआत लंदन के विपरीत दिशा में की थी. उस समय 1930 में मैं 26 साल का था और एस्पी 19 साल के थे. कराची के गरीब परिवार से एक युवा पारसी ने मुझे अपनी प्यारी आवाज में एक सुस्त फ्रेंच उच्चारण के साथ अपनी कहानी सुनाई थी.
जेआरडी टाटा ने बताया कि वे पहली बार काहिरा गए क्योंकि उनका कंपास 45 डिग्री से बाहर था. उन्होंने कहा कि भूमध्यसागरीय रास्ते की ओर, मैं अंतहीन रूप से दाईं ओर उड़ता जा रहा था. लेकिन दुर्भाग्य से वह दिन रविवार का था और काहिरा के लिए मैंने उड़ान भरी थी. उसी वक्त ब्रिटिश वायु सेना ने रोक लिया और उन्हें अलेक्जेंड्रिया जाने के लिए कहा और अलेक्जेंड्रिया में मुझे एक प्यारा बच्चा मिला. इसके बाद मैंने सोचा कि यह यहां क्या कर रहा है और वह बच्चा था एस्पी इंजीनियर.
उड़ान प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था 1930 में
भारत से इंग्लैंड या इंग्लैंड से भारत अकेले उड़ान भरने वाले पहले भारतीय को सम्मानित करने की घोषणा 1930 में आगा खान ने की थी. इसके साथ ही पुरस्कार एक वर्ष की अवधि के लिए खुला था. यह चुनौती तीन भारतीयों ने ली. लेकिन दो जल्द ही प्रतियोगिता के बीच में ही हट गए. मगर जेआरडी व 19 साल का एक किशोर मैदान में डटे हुए थे.
और ऐसे एस्पी के साथ जेआरडी की गहरी दोस्ती हो गई..
जेआरडी टाटा अपने साक्षात्कार में बताते हैं कि उन्होंने अस्पी से पूछा ‘तुम यहां क्या कर रहे हो ? इस पर अस्पी ने कहा कि वो प्लग का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि उनका स्पार्क-प्लग काम नहीं कर रहा था. उन्होंने अपना अपना स्पार्क प्लग इंग्लैंड में ही छोड़ दिया था. जेआरडी ने आगे बताया कि वो आने वाले पायलट में सबसे उन्नत था, इसलिए मैंने उसे अपना प्लग दे दिया. मेरे पास अतिरिक्त प्लग थे. वहीं बदले में उसने मुझे अपना माई वेस्ट (लाइफ जैकेट) दिया. फिर मैं जब पेरिस पहुंचा तो वे कराची पहुंच चुके थे.
ढ़ाई घंटे पहले कराची पहुंच कर अस्पी ने रेस जीती
अपने मरम्मत किए गए विमान के साथ अस्पी जेआरडी टाटा के लंदन पहुंचने से ढाई घंटे पहले कराची पहुंचे और ऐसे में उन्होंने रेस जीत ली. जेआरडी से जब यह पूछा गया कि क्या उन्हें कुछ ही घंटों में पुरस्कार न मिलने का पछतावा है ? इस पर उन्होंने कहा कि यह ऐसा कुछ है, जो मुझे लगता है कि किसी को भी करना चाहिए. खेल भावना यही है. अगर आपके पास खेल भावना नहीं है तो क्या बात है ? कराची में जेआरडी का एस्पी ने स्वागत किया. इसके साथ ही उड़ान प्रतियोगिता को जीतने में मदद करने के लिए धन्यवाद के रूप में एक पदक भी दिया.
भारत के दूसरे वायुसेनाध्यक्ष बने एस्पी
भारतीय वायुसेना में इस जीत के बल पर भर्ती किया गया. इसके बाद वह स्वतंत्र भारत के दूसरे वायुसेनाध्यक्ष भी बने. वहीं 1932 में जेआरडी, टाटा एयरलाइंस के साथ भारत के नागरिक उड्डयन उद्योग में अग्रणी बने. इसके बाद वह एयर इंडिया के अध्यक्ष भी बन गए. हमेशा इस साहसिक कार्य को जेआरडी ने संजोया था. कई वर्षों बाद उन्होंने एस्पी को लिखे एक पत्र में प्यार से याद दिलाया हमारी दोस्ती प्रतियोगिता जीतने की तुलना में अधिक गहरी हुई है और इसके साथ ही भारत के मिलिट्री एविएशन और सिविल एविएशन के बीच आजीवन मित्रता भी मिली. जेआरडी की ये कहानी हार में जीत की है, क्योंकि उन्होंने प्रतियोगिता से उपर खेल भावना को रखा. वहीं उन्होंने प्रतियोगिता को हारकर भी एक दोस्त जीत लिया.