जमशेदपुर : पूरी दुनिया में कम सुनाई देना अथवा बहरेपन का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. बढ़ते उम्र के साथ-साथ कानों की बीमारियां होना सामान्य बात माना जाता है. लेकिन हालिया रिपोर्ट ठीक इसके उलट है. रिपोर्ट के अनुसार बीते कुछ वर्षों में कम उम्र के लोगों में भी ये खतरा बढ़ता जा रहा है. एक हालिया रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ईयरबड्स, हेडफोन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के बढ़ते इस्तेमाल से कम सुनाई देने और बहरेपन के मामले अब बहुत ही ज्यादा हो गए हैं.
अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने ये भी कहा है कि 12 से 35 साल के 100 करोड़ से ज्यादा लोगों में सुनने की क्षमता कम होना अथवा बहरेपन का जोखिम हो सकता है. लंबे समय तक ईयरबड्स से तेज आवाज में गाना सुनना और शोरगुल वाली जगहों पर रहना इसका बड़ा कारण माना गया है.
ईयरबड्स और हेडफोन्स आजकल कानों को कैसे नुकसान पहुंचा रहे है और इससे कैसे बचा जा सकता है Padhega India को बता रहीं हैं डॉक्टर प्रीति पाण्डेय (ENT Specialist).
कानों को हो सकता है स्थाई नुकसान
लंबे समय तक ईयरबड्स और हेडफोन्स के इस्तेमाल को लेकर डॉ प्रीति पाण्डेय का कहना है कि इसके लंबे इस्तेमाल से कानों को स्थाई रूप से नुकसान पहुंच सकता है. आजकल जितने भी मामले आ रहे हैं उन सब में एक ही चीज कॉमन पाई जा रही है कि लोग हेडफोन्स का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. इसमें 40 से 50 साल के लोग अपने काम को लेकर हेडफोन्स का इस्तेमाल करते हैं. वहीं कम उम्र के लोग गाना सुनने, पोडकास्ट देखने और वॉकिंग के समय हेडफोन्स और ईयरबड्स का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जिस आवाज को हमें जिस फ्रीक्वेन्सी पर सुननी चाहिए, हेडफोन्स की वजह से उसकी फ्रिक्वेन्सी दोगुनी हो जाती है. यह आवाज हमारे कानों के पर्दे को बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाती हैं. कानों में आवाज जाने का एक जरिया है जो आवाज की बढ़ती गति की वजह से डैमेज होता जाता है.
हेडफोन्स और ईयरबड्स की कितनी सीमा होनी चाहिए
हेडफोन्स और ईयरबड्स की सीमा कितनी होनी चाहिए इसको डॉ प्रीति पाण्डेय का कहना है कि आजकल एक नियम आया है कि 60 फीसदी का, यानी 60 फीसदी 60 मिनट के लिए. इसे 60-60 का रेशियो कहा जाता है. हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम 80 डेसिबल से कम ही सुनें. वहीं पूरे 60 मिनट 80 डेसिबल पर सुनने के बाद एक बार ब्रेक जरुर लेना चाहिए. अगर हम 100 डेसिबल पर सुन रहे है तो 50 से 60 वर्ष के उम्र में वह समस्या आने लगेगी जो समस्या 80 वर्ष के उम्र में आती है.
कम उम्र के लोगों में बढ़ रहा है बहरेपन का खतरा
कम उम्र के लोगों में भी बहरेपन का खतरा बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है. इसका मुख्य कारण यह हैं कि पढ़ाई से लेकर काम तक सभी ऑनलाइन हो रही हैं. ऐसे में हेडफोन्स और ईयरबड्स का घंटों इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही आजकल मूवी देखने के लिए भी हेडफोन्स और ईयरबड्स का उपयोग किया जा रहा है, जिससे कम उम्र के लोगों में बहरेपन का खतरा बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है.
ब्रेक लेना बेहद जरुरी
कभी भी एक घंटे से ज्यादा ईयरबड्स का इस्तेमाल न करें. साथ ही ईयरबड्स का इस्तेमाल करें तो सिर्फ एक ही कान में करें और हर 15 मिनट में ईयरबड को एक कान से निकालकर दुसरे कान में लगाएं. इससे हमारे कानों को एक ब्रेक मिल जाता है. वहीं ऐसे हेडफोन्स भी बाजार में आते है जो पुरे कान को कवर कर लेते है. डॉ प्रीति का मानना है कि ऐसे हेडफोन्स ईयरबड्स की मुकाबले ठीक होते है. ये हेडफोन्स कानों को कम नुकसान पहुंचाते है. इसके साथ ही हमें ऐसे हेडफोन्स लेने चाहिए जो नॉईस कैंसिलेशन के साथ आते है. इससे हमें बहार की ध्वनी कम सुनाई देगी और हमें आवाज बढ़ाने की आवश्यकता नहीं होगी. इससे कम आवाज में ही हम सबकुछ क्लीयरली सुन सकेंगे.
कानों की आंतरिक कोशिकाओं की क्षति होने पर क्या होगा ?
आवाजों की वजह से कानों की आंतरिक कोशिकाओं को हुए नुकसान को ठीक किया जा सकता है. डॉ प्रीति का कहना है कि ऐसे मामलों में मरीज को फौरन हेडफोन्स का इस्तेमाल बंद करने की सलाह दी जाती है. साथ ही अगर मोबाइल का इस्तेमाल भी करना है तो स्पीकर पर करें. कुछ दिन बाद यह धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाती है. लेकिन अगर लंबे समय तक इस पर ध्यान न दिया जाए तो फिर इसे ठीक नहीं किया सकता है. क्योंकि ऐसे में सेल पूरी तरह से डैमेज हो गई होती है, जिसे ठीक कर पाना मुमकिन नहीं है.
सुनने की क्षमता कमजोर होने के लक्षण
– जब सुनने की क्षमता कम हो रही होती है तो कानों में एक आवाज आती है. यह आवाज व्यक्ति के सामने बैठने वाले को बिल्कुल भी सुनाई नहीं देगी, लेकिन उस व्यक्ति को जरुर सुनाई देगी जिसे यह समस्या है. यह आवाज इतनी परेशान करने वाली होती है कि इससे काम भी बाधित होगा और नींद भी पूरी नहीं होगी. हर समय कानों में ‘टिक-टिक’ आवाज सुनाई देती रहेगी. अगर यह लक्षण है तो आपको फौरन डॉक्टर परामर्श लेना चाहिए.
– कभी-कभी कुछ दवाइयों के इस्तेमाल से जैसे कि मलेरिया की दवाई और कुछ एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से भी सुनने की क्षमता कम हो सकती है. अगर आपको भी लगता है कि इन दवाओं के इस्तेमाल से आपकी भी सुनने की क्षमता कम हो रही है तो फौरन दवा रोक कर डॉक्टर की सलाह लें.
डिमेंशिया और सुनने की क्षमता में सबंध
डॉ प्रीति का कहना है कि सुनने कि क्षमता अगर कम हो रही है तो सोचने और बोलने की क्षमता भी कम होने लगती है. ऐसी परिस्थिति में सुनाई कम देने से लोगों यह लगता है कि सामने वाला व्यक्ति धीरे बोल रहा है और वे इस वजह से जोर से बोलते हैं. साथ ही ये सभी तंत्रिका से लीड होती है. क्योंकि आवाज जिस माध्यम से मस्तिष्क में पहुंचती है और वह पाथवे अगर डैमेज होने लगे तो न्युरोलोजिकल समस्याएं होने लगती हैं.
सुनने की समस्या से बचाव के उपाय
– बिना जरुरत के कोई भी दवा न लें.
– हल्की से परेशानी होने पर कानों में कोई ड्रॉप न डालें.
– फोन का इस्तेमाल ज्यादातर स्पीकर पर करें.
– जंक फूड्स का सेवन कम करें.
– कानों में ईयरबड्स डाल कर सफाई न करें.
कब करवाएं कानों की जांच
डॉ प्रीति पाण्डेय का कहना है कि जो लोग लगातार हेडफोन्स और ईयरबड्स का इस्तेमाल करते हैं उन्हें हर 3 महीने में एकबार कानों की जांच जरुर करवानी चाहिए. साथ ही हियरिंग टेस्ट भी करवा लेना चाहिए.