नई दिल्ली: डॉ. मौमिता का बलात्कार मामला एक बार फिर से भारत में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय की प्रणाली पर सवाल उठाता है। यह मामला न केवल डॉ. मौमिता की व्यक्तिगत त्रासदी है.यह उस गहरी सामाजिक समस्या की भी ओर इशारा करता है, जिसमें हमारी बेटियाँ और माताएँ सुरक्षित नहीं हैं। यह मामला निस्संदेह उन शोकपूर्ण घटनाओं की याद दिलाता है, जैसे निर्भया कांड, जिसने पूरे देश को हिला दिया था और सड़कों पर लाखों लोगों को न्याय की मांग करने के लिए मजबूर किया।
भारत में बेटियों की सुरक्षा एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है। जब हम इस पर बात करते हैं, तो हमें यह देखना होगा कि क्या वास्तव में हमारी बेटियाँ सुरक्षित हैं, या फिर वे समाज में एक बड़ी चुनौती का सामना कर रही हैं। हाल के वर्षों में, यौन हिंसा और बलात्कार के मामलों में वृद्धि ने इस सवाल को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।
-बढ़ते बलात्कार के मामले
भारत में बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर घंटे 4 से अधिक बलात्कार की घटनाएं होती हैं। यह संख्या चिंताजनक है और समाज के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है: क्या हमारे कानून और नीतियाँ वास्तव में बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही हैं?
-कहाँ है कमी?
भारत में बेटियों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जैसे कि पॉक्सो अधिनियम और महिला सुरक्षा अधिनियम। हालांकि, इन कानूनों का सही तरीके से कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती है। कई बार पुलिस और न्यायिक सिस्टम में भ्र्ष्टाचार और लापरवाही के कारण पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता।
क्या हमारी न्याय प्रणाली वास्तव में प्रभावी है? क्या कानूनों का अनुपालन हो रहा है? इन सवालों के जवाब हमें सोचने पर मजबूर करते हैं।
सिर्फ कानूनी कदम उठाने से काम नहीं चलेगा; हमें समाज में भी बदलाव की आवश्यकता है। पारंपरिक सोच और लिंग आधारित भेदभाव अब और सहन नहीं किए जा सकते। बॉलीवुड की कई फिल्मों, जैसे “बदला” और “पिंक”, ने इस मुद्दे को उजागर किया है और समाज में जागरूकता बढ़ाने में मदद की है।
क्या हम बेटियों को सुरक्षित महसूस कराने के लिए उनके अधिकारों को सही तरीके से समझा रहे हैं? क्या परिवारों में बेटियों को समान अवसर और सुरक्षा मिल रही है? ये सवाल आज भी प्रासंगिक हैं। शिक्षा और जागरूकता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए हमें जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
क्या स्कूलों और कॉलेजों में इस विषय पर चर्चा हो रही है? क्या बच्चों को यौन शिक्षा दी जा रही है? ये पहलू हमारे समाज के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।बेटियों की सुरक्षा केवल परिवारों या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है; यह एक सामाजिक मुद्दा है, जिसमें सभी का योगदान आवश्यक है।
क्या हम अपने समाज में बेटियों को सुरक्षित महसूस कराने के लिए सही दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं? यह प्रश्न हर एक नागरिक को खुद से पूछना चाहिए। अगर हम इस दिशा में काम करना चाहते हैं, तो हमें एकजुट होकर काम करना होगा ताकि हमारे समाज में बेटियाँ न केवल सुरक्षित रहें, बल्कि स्वतंत्रता और सम्मान के साथ अपने सपनों को पूरा कर सकें।आखिरकार, क्या हम वाकई अपनी बेटियों को सुरक्षित रखने में सक्षम हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जो हमें निरंतर सोचने पर मजबूर करता है।