नई दिल्ली: क्या मेडिकल कॉलेज फीस का भुगतान न करने वाले छात्र के दस्तावेज़ों को रोक सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के एक कॉलेज को ये निर्देश दिया है कि वे 91 स्टूडेंट्स के ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स वापुस कर दें. इस संस्थान ने स्टूडेंट्स के फीस पूरी जमा न होने के कारण इनके डाक्यूमेंट्स रख लिए थे. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच के सामने डॉक्टरों की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल और तन्वी दूबे ने दलील पेश की। वकीलों ने कहा कि ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स नहीं होने के कारण स्टूडेंट्स न तो डॉक्टर के तौर पर रजिस्ट्रेशन करा पाएंगे और न ही वह उच्च शिक्षा के लिए पेपर दे पाएंगे।सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के देहरादून में स्थित मेडिकल कॉलेज को 7.5 लाख रुपये के भुगतान पर उन छात्रों को उनके मूल दस्तावेज लौटाने का आदेश दिया, जिन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई और सर्टिफाइड इंटर्नशिप पूरी कर ली है।
कोर्ट ने कहा ,छात्रों को देना होगा एफिडेविट:
सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स से कहा है कि वह एफिडेविट दें . वह बकाया एरियर फीस का भुगतान करेंगे। मेडिकल कॉलेज ने ऑल इंडिया कोटे के तहत प्रवेश पाने वाले स्टूडेंट्स के लिए सालाना फीस पांच लाख रुपये से बढ़ाकर 13.22 लाख कर दिया था। पढ़ाई और इंटर्नशिप पूरी कर चुके स्टूडेंट्स ने कॉलेज के फैसले की वैलिडिटी को चुनौती दी थी।वकील ने बताया कि छात्रों ने करीब 38 लाख रुपये का भुगतान करने के आदेश को चुनौती दी थी। वकील ने कहा अगर छात्रों को पहले से पता होता तो वे उत्तराखंड के कॉलेज को कभी नहीं चुनते. उन्हें अपने होमटाउन में कम फीस पर कॉलेज मिल रहे थे। हाईकोर्ट ने 9 किस्तों में पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था।