जमशेदपुर : जमशेदपुर के साकची स्थित दोराबजी टाटा पार्क में दोराबजी टाटा की 165वीं जयंती मनाई गई. इस अवसर पर टाटा स्टील और उनकी अनुषंगी इकाई के साथ जमशेदपुर सीनियर सिटीजन और कई सामाजिक संस्थाओं के लोगों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. गौरतलब है कि दोराबजी टाटा केवल एक व्यवसायी ही नहीं थे, बल्कि वह एक समर्पित देशभक्त भी थे. जो आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में दृढ़ विश्वास रखते थे. उन्होंने चुनौती पूर्ण तरीके से छोटा नागपुर इलाके में भारत के पहले इस्पात संयंत्र की स्थापना का नेतृत्व किया, जो देश की औद्योगिक यात्रा की शुरुआत थी. इसके साथ ही उन्होंने दुर्गम पश्चिमी घाट में जल विद्युत संयंत्रों के निर्माण की भी अगुवाई की. जिससे देश को ऊर्जा और विकास की नई दिशा मिली. उनके नेतृत्व में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी ने टाटा स्टील की स्थापना के सपने को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी देखरेख में कंपनी ने 2,90,000 टन इस्पात का उत्पादन किया, जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों के युद्ध प्रयासों में बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ.
इस उल्लेखनीय योगदान के सम्मान में ब्रिटिश सरकार ने लौह नगरी का नाम साकची से बदलकर जमशेदपुर रखा. जो सर दोराबजी की दूर दृष्टि और विरासत को श्रद्धांजलि है. उन्होंने इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च और नेशनल सेंटर परफॉर्मिंग आर्ट जैसी महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की. उन्होंने 1920 के एंटवर्प ओलंपिक में भारत की पहली ओलंपिक टीम को वित्तीय सहायता प्रदान की.