जिस डाक्टर की खोज ने महिलाओं की गोद में भरी किलकारी, जानें क्यों करनी पड़ गई उसे खुदकुशी
नई दिल्ली : भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी का क्रांतिकारी प्रयोग करने वाले डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय की कहानी सचमुच दिल दहला देने वाली है। 1978 में उन्होंने टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया की शुरुआत की थी, जिससे कई दंपत्तियों को संतान सुख मिला। मगर, उस समय उनकी इस खोज को मान्यता देने के लिए कोई तैयार नहीं था। सरकार ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया। यही नहीं, उनकी टेस्ट ट्यूब बेबी की खोज का इस कदर मजाक उड़ाया गया कि आखिरकार तंग आकर 19 जून 1981 को डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने आत्महत्या कर ली। इस तरह, जिस खोज के लिए उन्हें इनाम मिलना चाहिए था वही उनका चमत्कारिक काम उनकी मौत का कारण बन गया।
खोज को मान्यता मिलने में लगा समय
डॉ. मुखोपाध्याय की कोशिशों को मान्यता मिलने में समय लगा, लेकिन उनके निधन के कई साल बाद, 6 अगस्त 1986 को भारत में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी, हर्षा, जन्मी। बाद में, डॉ. टीसी आनंद कुमार ने डॉ. मुखोपाध्याय के प्रयास को मान्यता दिलाई और बताया कि टेस्ट ट्यूब बेबी की खोज का श्रेय डॉक्टर मुखोपाध्याय को है। आज, भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का नाम कनुप्रिया अग्रवाल है, जो पुणे की निवासी हैं और एक स्वस्थ जीवन जी रही हैं। कनुप्रिया 10 साल के एक बच्चे की मां भी हैं।
डायरी से आगे बढ़ी टेस्ट ट्यूब की कहानी
डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने टेस्ट ट्यूब बेबी पर रिसर्च किया था। उन्होंने अपनी पूरी रिसर्च एक डायरी में लिख रखी थी। उनका यह सफल रिसर्च था। मगर, इस रिसर्च को विवादित बना दिया गया था। लोग डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय का मजाक बनाने लगे थे। यही वजह है कि डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने अपनी रिसर्च बंद कर दी और इस मामले में पीछे हट गए। उनके परिवार के लोग बताते हैं कि डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय डिप्रेशन में चले गए थे और एक दिन सुसाइड कर लिया। बाद में एक डॉक्टर आनंद ने डॉ सुभाष मुखोपाध्याय की पत्नी से संपर्क किया। डॉ आनंद ने डॉ सुभाष मुखोपाध्याय की डायरी प्राप्त कर ली जिसमें इस टेस्ट ट्यूब बेबी की पूरी प्रक्रिया लिखी हुई थी। इसके बाद टेस्ट ट्यूब बेटी कनुप्रिया पैदा हुई। डॉ आनंद ने सभी को बताया कि टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करने का श्रेय उन्हें नहीं बल्कि डॉ सुभाष मुखोपाध्याय को है।