भारतीय युवा पांडुरंग ने NASA पहुंच गाड़ा सफलता का परचम, जानें अर्श पर कैसे पहुंचे
नई दिल्ली: भारतीय एजुकेशन सिस्टम का मान बढ़ाते हुए, पांडुरंग नायक ने अपनी उच्च शिक्षा के सफर में न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपने सेकेंडरी एस्टाब्लिशमेंट्स का निर्माण किया। उनकी कहानी एक प्रेरणा का स्रोत है, जो हमें यह बताती है कि संघर्ष और मेहनत से कुछ भी करना संभव है।
बचपन से ही पढाई लिखाई में दिलचस्पी रखते थे नायक
एक साधारण गांव से आए पांडुरंग ने बचपन से ही पढ़ाई में दिल लगा दिया था। उनके परिवार ने उनकी शिक्षा को प्राथमिकता दी और उन्हें स्टेबिलिटी और स्ट्रगल के माध्यम से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते देखा।
आईआईटी से NASA तक का सफर तय किया था पांडुरंग ने:
1980 में आईआईटी-जेईई परीक्षा में भारत में टॉप रैंक हासिल करने के बाद, पांडुरंग ने अपनी शिक्षा को और भी ऊंचाइयों तक ले जाने का संकल्प किया। IIT Bombay से ग्रेजुएशन करने के बाद, उन्होंने Stanford University, USA में कंप्यूटर साइंस में रिसर्च जारी रखा।
नासा के भी यात्री थे पाण्डुरंग नायक
अपनी पढ़ाई को पूरा करने के बाद, पांडुरंग ने NASA के अमेरिकन साइंस में अपना करियर शुरू किया। वहां उन्होंने उच्च स्तर पर कार्य किया और कंप्यूटेशनल साइंसेज में अपना नाम रोशन किया। उन्होंने NASA के लिए AI और सॉफ़्टवेयर एडवांस किया, जिसने स्पेसक्राफ्ट के लिए पहली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम की एक्सीलेंस में सुधार किया।
भारत वापसी और गूगल में योगदान
2004 में उन्होंने Google में शामिल होकर टेक्निकल स्टाफ के रूप में अपना अनुभव और ज्ञान साझा किया। उनका योगदान गूगल के लिए उच्च क्वालिटी के तकनीकी सर्विसेज प्रदान करने में रहा, और उनके विशेष दायरे में डेटा, मशीन लर्निंग और इंफ़ॉर्मेशन रिट्रीवल के क्षेत्र में इन्वेस्टीगेशन किया गया।
पांडुरंग नायक की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष, मेहनत और आत्मविश्वास से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। उनका योगदान विज्ञान और तकनीकी में अनोखा है, और उनकी प्रेरणा नए भारतीय युवाओं के लिए एक मोटीवेशनल स्टोरी है। युवा और उनके साथी भी उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक होंगे कि इस तरह की शानदार सफलता के सफर पर कैसे बढ़ते हैं।