जमशेदपुर की स्कूली शिक्षा की स्तंभ ललिता सरीन का हुआ निधन
• 11 माह से कैंसर से थी पीड़ित
• 75 वर्ष की थीं ललिता सरीन
• शिक्षा में इनोवेशन के लिए हमेशा याद की जाएंगी स्व. सरीन
• सीबीएसइ की मास्टर ट्रेनर थीं ललिता सरीन
• अब तक हज़ारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, सफल इंसान बनाया
ललिता शरीन ने अपने करियर की शुरुआत 1978 में अंग्रेजी विषय की शिक्षिका के रूप में सबसे पहले सेक्रेड हार्ट कान्वेंट से की. यहां उन्होंने क़रीब 10 साल तक अपनी सेवाएं दी. इसी दौरान करीब 1988 में बारीडीह में जमशेदपुर पब्लिक स्कूल की स्थापना की गई थी, और ललिता शरीन को जेपीएस का पहला प्रिंसिपल चुना गया था. लगातार क़रीब 22 वर्षों तक उन्होंने जेपीएस में प्रिंसिपल की कमान सँभाली. नवंबर 2010 में जेपीएस से रिटायर होने के बाद उन्होंने पहले सर्किट हाउस में चलने वाले माउंट लिटरा जी स्कूल में अपनी सेवा दी, उसके बाद उन्होंने पारडीह स्तिथ माउंट लिटरा जी स्कूल में बतौर इनिशियेटिव डायरेक्ट का पद संभाला. कैंसर होने के बाद भी वह कुछ दिनों तक स्कूल जाती थी. ललिता शरीन को जमशेदपुर हमेशा-हमेशा उनके इनोवेटिव आइडिया, डिसिप्लिन, और उस दौर में बेहतर रिज़ल्ट के लिए याद करेगा. पढ़ेगा इंडिया परिवार की ओर से स्व. ललिता शेरीन को भावभीनी श्रद्धांजलि.
शादी नहीं की थी, पूरा जीवन शिक्षा को कर दिया समर्पित
ललिता सरीन ने शादी नहीं की थी. उन्होंने कहा था कि वह अपने पिता चमनलाल त्रेहान और माता इंदिरा त्रेहान को अपना आदर्श मानती हैं, क्योंकि इकलौती गर्ल चाइल्ड होने के बाद भी उनके माता-पिता ने कभी उनपर ना शादी का दबाव बनाया और ना ही पढ़ने-लिखने में कोई रोक-टोक किया. उनके हर निर्णय को अपना समर्थन दिया. ललिता सरीन
ने अपना पूरा जीवन शिक्षा को समर्पित कर दिया था.
जिस स्कूल से की पढ़ाई, वहीं बनी टीचर
ललिता सरीन की स्कूली शिक्षा सेक्रेड हार्ट कान्वेंट में हुई. ग्रेजुएशन जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज और पोस्ट ग्रेजुएशन को-ऑपरेटिव कॉलेज से की. बीएड की पढ़ाई लोयला कॉलेज में की. इसके साथ ही उन्होंने शिमला विश्वविद्यालय से साइकोलॉजी में एमए किया. उन्होंने जिस कॉन्वेंट स्कूल से ख़ुद अपनी पढ़ाई की, उसी स्कूल में वह शिक्षिका भी बनी. ललिता सरीन ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण ऊँचाइयों को हासिल किया.
भारत विभाजन होने पर दादा लाहौर से आए थे अमृतसर
ललिता सरीन के दादा भारत विभाजन के दौरान लाहौर से अमृतसर आकर बस गए थे. जबकि उनके माता-पिता हमारे ललिता सरीन के जन्म से पहले से ही जमशेदपुर आ गए थे. ललिता सरीन कहती थीं कि उन्हें जमशेदपुर के बाहर देश के कई स्कूलों से ऑफर आए, लेकिन वह जमशेदपुर छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती थीं, इस लिए उन्होंने शहर के स्कूलों में ही अपनी सेवाएं दी.
जमशेदपुर के शिक्षा जगत की 45 साल की सेवा
ललिता सरीन ने अपने करियर की शुरुआत 1978 में अंग्रेजी विषय की शिक्षिका के रूप में सबसे पहले सेक्रेड हार्ट कान्वेंट से की. यहां उन्होंने क़रीब 10 साल तक अपनी सेवाएं दी. इसी दौरान करीब 1988 में बारीडीह में जमशेदपुर पब्लिक स्कूल की स्थापना की गई थी, और ललिता सरीन को जेपीएस का पहला प्रिंसिपल चुना गया था. लगातार क़रीब 22 वर्षों तक उन्होंने जेपीएस में प्रिंसिपल की कमान सँभाली. नवंबर 2010 में जेपीएस से रिटायर होने के बाद उन्होंने पहले सर्किट हाउस में चलने वाले माउंट लिटरा जी स्कूल में अपनी सेवा दी, उसके बाद उन्होंने पारडीह स्तिथ माउंट लिटरा जी स्कूल में बतौर इनिशियेटिव डायरेक्ट का पद संभाला. कैंसर होने के बाद भी वह कुछ दिनों तक स्कूल जाती थी. उनके निधन से शिक्षा जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. उनकी सबसे करीबी दोस्त सब केएसएमएस की प्रिंसिपल नंदिनी शुक्ला ने कहा कि ललिता सरीन परिवार के सदस्य की तरह थीं. दोनों दिन भर काम के प्रेशर के बाद भी साथ में मोहन आहूजा स्टेडियम में बैडमिंटन खेलते थे. शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जब दोनों आपस में बात नहीं कर पाती थीं. ललिता सरीन को जमशेदपुर हमेशा-हमेशा उनके इनोवेटिव आइडिया, डिसिप्लिन, और उस दौर में बेहतर रिज़ल्ट के लिए याद करेगा. पढ़ेगा इंडिया परिवार की ओर से स्व. ललिता सरीन को भावभीनी श्रद्धांजलि.
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