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जमशेदपुर की इन तीन महिला शक्तियों पर पेरिस ओलंपिक में जीत का दारोमदार
पेरिस ओलिंपिक 2024 की शुरुआत 26 जुलाई से होगी. इस बार ओलिंपिक में जमशेदपुर के तीरंदाजों का जलवा देखने को मिलेगा. टाटा आर्चरी आर्चरी एकेडमी की वर्तमान कैडेट भजन कौर, अंकिता भकत और पूर्व कैडेट दीपिका कुमारी ने पेरिस ओलिंपिक के लिए क्वालिफाइ किया. वहीं, जमशेदपुर की पूर्णिमा महतो को टीम का कोच बनाया गया है. फिलहाल पूरी टीम कोच पूर्णिमा महतो की देखरेख में पुणे में अभ्यास कर रही है. वहीं, गुरुवार को टाटा आर्चरी एकेडमी के तीनों आर्चर और कोच पूर्णिमा महतो नयी दिल्ली में में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी. फिलहाल, पूरी टीम पुणे में अभ्यास कर रही है. वहीं, दूसरी ओर पेरिस ओलंपिक में जमशेदपुर का झंडा बुलंद हो, इसके लिए जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में एक समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें सभी ने केट काटा और कैडेट भजन, अंकिता व कोच पूर्णिमा महतो को ओलिंपिक में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए शुभकामनाएं दी. इस मौके पर टाटा स्टील स्पोर्ट्स के प्रमुख मुकुल विनायक चौधरी, अंतरराष्ट्रीय हैंडबॉल हसन इमाम मलिकके साथ ही खेल जगत की कई हस्तियां मौजूद थी. इस बार के ओलिंपिक में जमशेदपुर की दो महिला तीरंदाज भजन व अंकिता ने क्वालिफाइ किया है. वहीं, कोच की भूमिका जमशेदपुर की पूर्णिमा महतो निभाएंगी.
अब आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं भजन कौर
ये हैं भजन कौर. इन पर पूरे हिंदुस्तान को नाज है. सबकी चाहत है कि भजन अचूक निशाना साध ले. भजन कौर ऐलनाबाद के किसान भगवान सिंह की बेटी है. भजन कौर ने अब तक आर्चरी में 10 गोल्ड और चार सिल्वर मेडल जीतकर अपने माता- पिता के साथ-साथ देश का नाम रोशन कर रही है. भजन कौर बताती हैं कि उसके स्कूल में तीरंदाजी होती थी. जब वह आठवीं क्लास में थी, तो एक दिन किसी सीनियर की आर्चरी किट यानी धनुष-बाण स्कूल में छूट गयी थी. इस दौरान स्कूल के एक शिक्षक ने उसे बौ चलाने के लिए कहा. बिना किसी प्रैक्टिस के उसने सिर्फ सीनियर को देख कर काफी अच्छे से धनुष-बाण को पकड़ा, और निशाना साधा. इसे देखकर स्कूल के सभी शिक्षक उससे काफी हुए और यहीं से उसका तीरंदाजी का सफर शुरू हो गया.
हालांकि, यह सफर इतना आसान नहीं था. भजन कौर ने बताया कि जब उसने अपने पिता को बताया कि वह तीरंदाजी करना चाहती है तो एक बार तो पिता भगवान सिंह बहुत अच्छा लगा, लेकिन उनके सामने समस्या थी कि अब आखिर अपनी बेटी के लिए आर्चरी किट कहां से लाएं. क्योंकि आर्चरी किट काफी महंगी आती है और वे ठहरे किसान. बेटी की इच्छा को देखते हुए उन्होंने आस-पास के लोगों से कर्ज लिया और 25 हजार रुपये की आर्चरी किट खरीद कर दी. इससे कुछ दिन काम जरूर चला, लेकिन यह उतनी अच्छी नहीं थी. लेकिन, बिटिया की लगन और मेहनत को देखते हुए उन्होंने खेत बेच दी और साढ़े तीन लाख रुपये का आर्चरी किट लाकर दिया. आज भजन कौर पर पूरा देश नाज कर रहा है.
भजन कौर ने अब तक 10 गोल्ड और चार सिल्वर पर अपना निशाना लगा चुकी है. दीदी की सफलता से उसका छोटा भी प्रभावित हो गया. बड़ी बहन को देख कर भाई ने भी प्रैक्टिस करना शुरू किया. भाई ने अंडर-9 में खेलते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया है. खेती बाड़ी करने वाले इस किसान के घर दो-दो धर्नुधर पैदा हुए हैं, यह शायद इनके माता-पिता को भी नहीं मालूम.
पिता कोलकाता में बेचते हैं दूध, बिटाया है यूथ आइकॉन
अंकिता भगत का जन्म कोलकाता में हुआ है. हालांकि, उन्होंने तीरंदाजी के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए झारखंड को अपनी कर्मस्थली बनया. 2014 में अंकिता ने तीरंदाजी के क्षेत्र में कदम रखा. उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी. अगर यह सब कुछ हो रहा है तो इसका श्रेय पूर्णिमा महतो और दीपिका दीदी को जाता है. क्योंकि उन्हें देख कर ही तीरंदाजी के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा. इसके बाद जमशेदपुर में टाटा आर्चरी एकेडमी ने उनके हौसलों को उड़ान दी. जमशेदपुर में ही को-ऑपरेटिव कॉलेज के ग्रेजुएशन की छात्रा अंकिता भगत एक साधारण परिवार से आती हैं. माता पिता की अकेली संतान अंकिता के पिता की कोलकाता में दूध का स्टॉल है तो मां हाउस वाइफ हैं. अंकिता कहती है कि झारखंड में तीरंदाजी में प्रतिभा की कमी नहीं है, सरकार मदद करे तो झारखंड पूरी दुनिया को एक से बढ़ कर एक तीरंदाज दे सकता है. लेकिन यह इसलिए नहीं हो पाता है कि सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है. सरकार से इस दिशा में मदद की अपील भी की. कहा कि सामान्य परिवार के बच्चे के लिए तीरंदाजी एक महंगा गेम है. इसका एक धनुष ही कम से कम दो से तीन लाख में आता है.
तीरंदाजी के क्षेत्र में देश और झारखंड का नाम रोशन कर रहीं अंकिता इसका श्रेय अपने माता-पिता, टाटा एकेडमी और कोच शिशिर महतो को देती हैं. झारखंड में कैसे तीरंदाजी की विकास हो, इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि जरूरत है स्कूल और स्थानीय स्तर पर तीरंदाजी को प्रमोट किया जाए, जो अत्याधुनिक तीर-धनुष हम प्रतियोगिता में इस्तेमाल करते हैं वह उपलब्ध हो. अच्छे कोच की व्यवस्था हो. ग्रासरूट लेवल पर ऐसी व्यवस्था होने से झारखंड में तीरंदाजी के एक दो खिलाड़ी नहीं बल्कि कई प्रतिभाएं निखर कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर छाएंगी. अंकिता ने कहा कि गुजरात, हरियाणा जैसे राज्य तीरंदाजी में अपने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिये बेहतर योजना के साथ काम कर रही हैं, झारखंड को भी वैसा ही करना चाहिए.[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]